भुवनेश्वर. आज यदि विश्व में सबसे बड़ी वैज्ञानिक भाषा कोई है, तो वह हिंदी है. हिंदी के पास 22 लाख शब्दावली का विशाल भंड़ार है. उक्त आशय के उद्गार राजस्थान विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग के प्रो.नंद किशोर पाण्डेय ने अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ द्वारा हिन्दी दिवस पर आयोजित आनलाइन व्याख्यान में ‘भारतीय भाषाओं और हिंदी का समन्वित विकास’ विषय पर अपने विचार रखते हुए व्यक्त किए. आपने कहा कि हिन्दी के विकास का 1300 वर्षों का इतिहास है. 1961 से हिन्दी की वैज्ञानिक शब्दावली पर काम चल रहा है, क्योंकि किसी भाषा को राजभाषा बनाने के लिए उसका एक बृहद शब्दकोष और प्रशासनिक शब्दावली होनी चाहिए. आज 22 भाषाओं की शब्दावली बन चुकी है. किंतु फिर भी हिन्दी को जो स्थान मिलना चाहिए वह नहीं मिला. आज सर्वाधिक विद्यार्थी हिन्दी माध्यम की परीक्षा देते हैं, विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा भी हिन्दी है, किंतु अपने ही देश में उपेक्षित सी है. आज यदि हम तकनीकी ज्ञान में कहीं पिछड़ रहे हैं, तो उसका एक बड़ा कारण अपनी मौलिक भाषा में तकनीकी शिक्षा का अभाव है. मौलिक अनुसंधान के लिए हम विदेशों पर आश्रित हैं क्योंकि हमने अपनी भाषा में कोई तकनीक बच्चों को नहीं पढ़ाई. आपने यह भी कहा कि जब तक उच्च शिक्षा भारतीय भाषाओं में नहीं दी जाती भला नहीं हो सकता. भला हो नई शिक्षा नीति का जिसमें प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में देने की बात कही गई है. भाषा चलती है इच्छा शक्ति पर और राष्ट्रीयता की भावना पर. महात्मा गांधी ने इस पर ध्यान दिया और उनके प्रयासों से हिन्दी समृद्ध हुई. आज हिन्दी विश्वविद्यालय स्थापित किए जाने की आवश्यकता है. पाण्डेय ने कहा कि आज का दिन न सिर्फ हिन्दी के लिए बल्कि अन्य भारतीय भाषाओं के लिए भी महत्वपूर्ण है. इस अवसर पर अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के माननीय अध्यक्ष प्रो. जगदीश प्रसाद सिंघल जी, महामंत्री शिवानंद सिंदनकेरा जी, संगठन मंत्री महेन्द्र कपूर जी, उच्च शिक्षा प्रभारी महेन्द्र कुमार सहित महासंघ के पदाधिकारियों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही. कार्यक्रम का लाइव प्रसारण फेसबुक पेज पर भी किया गया. कार्यक्रम का शुभारंभ ममता डी के की सरस्वती वंदना से हुआ, कार्यक्रम का संचालन माध्यमिक संवर्ग के सचिव मोहन पुरोहित ने किया, आभार कोषाध्यक्ष संजय राऊत ने व्यक्त किया. बसंत जिंदल के द्वारा कल्याण मंत्र के साथ ही कार्यक्रम सम्पन्न हुआ.
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