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NILESH SHUKLA गुजरात
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भारत को नेपाल की घटनाओं पर कड़ी निगरानी क्यों रखनी चाहिए?

(निलेश शुक्ला)

नई दिल्ली,जब भी नेपाल राजनीतिक उथल-पुथल से गुजरता है, उसकी गूँज तुरंत भारत में महसूस होती है। भौगोलिक रूप से दूर बसे पड़ोसियों से अलग, नेपाल का भविष्य भारत से ऐसे जुड़ा हुआ है जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रूपों में झलकता है। नेपाल में हाल की राजनीतिक अस्थिरता—बदलते गठबंधन, बढ़ती राष्ट्रवादी बयानबाज़ी और संवैधानिक पहचान को लेकर बहस—का भारत पर सीधा असर पड़ता है।

नई दिल्ली नेपाल की घटनाओं को अनदेखा क्यों नहीं कर सकती, इसके तीन मुख्य कारण हैं:

  • सुरक्षा का असर:खुली सीमा से उग्रवादी समूहों, तस्करों या शत्रुतापूर्ण खुफिया एजेंसियों को भारत में घुसपैठ करने का आसान रास्ता मिल जाता है। अगर नेपाल में अस्थिरता गहराती है, तो बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और सिक्किम जैसे सीमा-राज्यों में अस्थिरता फैल सकती है।
  • भूराजनीतिक शतरंज:चीन बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं, कर्ज़ कूटनीति और रणनीतिक कदमों के ज़रिये नेपाल में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। पाकिस्तान भी काठमांडू में भारत-विरोधी माहौल बनाने की कोशिश कर चुका है। अगर नई दिल्ली निष्क्रिय रहती है तो अपने ही पिछवाड़े में रणनीतिक ज़मीन खो सकती है।
  • जन-जन के रिश्ते:लाखों नेपाली भारत में रहते, काम करते और पढ़ते हैं। सीमा पार सांस्कृतिक और पारिवारिक रिश्तों का मतलब है कि नेपाल की अस्थिरता भारत की घरेलू राजनीति पर भी सामाजिक-सांस्कृतिक असर डाल सकती है।

साफ़ शब्दों में कहें तो नेपाल की आंतरिक घटनाएँ अलग-थलग नहीं हैं; वे सीधे भारत की पड़ोस नीति और दीर्घकालिक स्थिरता से जुड़ी हैं।

भारत के लिए नेपाल का महत्व: सुरक्षा, व्यापार और संस्कृति

भारत और नेपाल 1,800 किलोमीटर से अधिक लंबी सीमा साझा करते हैं—जो अधिकांश हिस्सों में खुली और बिना नियमन की है। यह एक अनूठी विशेषता है जो भारत के लिए अवसर और खतरा दोनों साथ लाती है।

सुरक्षा आयाम

भारतीय सुरक्षा योजनाकारों के लिए खुली सीमा दोधारी तलवार है। एक ओर यह लोगों के आवागमन और एकीकरण को आसान बनाती है, जिससे सामाजिक रिश्ते मज़बूत होते हैं। दूसरी ओर, यह भारत को तस्करी, आतंकवाद या खुफिया घुसपैठ के जोखिमों के सामने उजागर भी करती है। अतीत में पाकिस्तान की आईएसआई ने नेपाल की ज़मीन का इस्तेमाल भारत-विरोधी गतिविधियों के लिए किया है, जिसमें नकली नोटों का कारोबार और स्लीपर सेल की व्यवस्था शामिल रही है।

इसके अलावा, नेपाल में अस्थिरता शरणार्थियों की आमद बढ़ा सकती है या कट्टरपंथी समूहों को छिद्रपूर्ण सीमा का फ़ायदा उठाने का मौका दे सकती है। इसलिए काठमांडू में स्थिर और सहयोगी सरकार बनाए रखना केवल कूटनीतिक उद्देश्य नहीं बल्कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा की मूलभूत आवश्यकता है।

व्यापार और कारोबारी रिश्ते

नेपाल की अर्थव्यवस्था भारत से गहराई से जुड़ी हुई है। नेपाल के दो-तिहाई से अधिक व्यापार भारत के साथ होते हैं और उसकी ज़्यादातर पेट्रोलियम, बिजली और आवश्यक वस्तुएँ भारतीय आपूर्ति शृंखलाओं से आती हैं। नेपाल स्थल-रुद्ध देश है और उसका वैश्विक बाज़ार तक पहुँचना लगभग पूरी तरह भारतीय बंदरगाहों पर निर्भर है।

भारतीय कारोबारियों के लिए नेपाल घरेलू बाज़ार का स्वाभाविक विस्तार है। गोरखपुर और सिलीगुड़ी के छोटे व्यापारी हों या बैंकिंग, दूरसंचार और ऊर्जा क्षेत्र की बड़ी भारतीय कंपनियाँ—नेपाल का बाज़ार प्रत्यक्ष रूप से पार-सीमा विकास में योगदान देता है। यदि नेपाल में भारत-विरोधी भावनाएँ बढ़ीं, तो सबसे पहले भारतीय कारोबारी हित प्रभावित होंगे और उसकी जगह चीनी प्रभाव बढ़ेगा।

सांस्कृतिक और सभ्यतागत रिश्ते

भारत के अन्य पड़ोसियों के विपरीत, नेपाल केवल भौगोलिक रूप से ही नहीं बल्कि सभ्यतागत रूप से भी करीब है। हिंदू और बौद्ध परंपराओं की साझा विरासत, भाषाई समानताएँ, अंतर्जातीय विवाह और सामाजिक परंपराएँ भारत–नेपाल रिश्ते को अनूठा बनाती हैं। जनकपुर–अयोध्या संबंध, पशुपतिनाथ और गंगा के प्रति साझा श्रद्धा और भारतीय सेना में गोरखा रेजिमेंट इसकी मिसाल हैं।

लेकिन केवल सांस्कृतिक रिश्ते इस संबंध को टिकाए नहीं रख सकते यदि राजनीतिक अविश्वास बढ़ता है। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि सांस्कृतिक कूटनीति और जन-जन के रिश्तों को लगातार मज़बूत किया जाए, भले ही राजनीतिक चुनौतियाँ बनी रहें।

नेपाल के नए नेताओं से संवाद: चीन और पाकिस्तान का जवाब

भारत के लिए आज नेपाल में सबसे बड़ी चुनौती है नई राजनीतिक पीढ़ी का उदय, जो अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में भारत से भावनात्मक रूप से कम जुड़ी हुई है। नेपाली नेताओं की नई पीढ़ी—जो राष्ट्रवादी भाषणों से प्रेरित है और भारत के “बड़े भाई” वाले रवैये से सावधान रहती है—अक्सर चीन के बुनियादी ढाँचा निवेश के वादों को ज़्यादा आकर्षक मानती है।

यहाँ भारतीय कूटनीति को बदलना होगा। केवल पुराने राजनीतिक सहयोगियों पर भरोसा करने के बजाय, नई दिल्ली को काठमांडू के उभरते नेताओं, युवा संगठनों और नागरिक समाज आंदोलनों से सक्रिय संवाद करना चाहिए। इससे तीन फायदे होंगे:

  • चीनी प्रभाव का संतुलन:चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं और राजनीतिक फंडिंग के ज़रिए नेपाल में अपनी पकड़ बढ़ा रहा है। उभरते नेताओं से समय रहते संवाद स्थापित करके भारत बीजिंग की कथा का जवाब दे सकता है और अधिक टिकाऊ व स्वीकार्य विकल्प दे सकता है।
  • पाकिस्तानी शरारतों को निष्प्रभावी करना:यद्यपि पाकिस्तान का नेपाल में सीमित असर है, उसने ऐतिहासिक रूप से फंडिंग, धार्मिक नेटवर्क और प्रचार के ज़रिए भारत-विरोधी भावनाएँ भड़काने की कोशिश की है। राजनीतिक रूप से अलग-थलग पड़ा नेपाल ऐसी गतिविधियों के लिए उपजाऊ ज़मीन बन सकता है। युवाओं के साथ विश्वास निर्माण से भारत-विरोधी कथाओं का असर घटेगा।
  • आगे की साझेदारी का संदेश:शिक्षा, कौशल विकास और डिजिटल अर्थव्यवस्था पहलों का समर्थन करके भारत नेपाल के भविष्य के लिए पसंदीदा भागीदार बन सकता है। यह रिश्ता केवल अतीत की बातों पर नहीं बल्कि भविष्य निर्माण पर आधारित होना चाहिए।

भारत कीपड़ोस प्रथम नीतितभी सफल होगी जब वह केवल सरकारों तक सीमित न रहकर जनता और नए शक्ति केंद्रों तक फैलेगी।

खुली सीमा: अवसर और चुनौती

भारत–नेपाल की खुली सीमा दुनिया में अनूठी है। दोनों देशों के नागरिक बिना वीज़ा के यात्रा, निवास, काम और व्यापार कर सकते हैं। इससे बेमिसाल सामाजिक एकीकरण हुआ है, लेकिन इसके साथ संवेदनशील सवाल भी उठते हैं।

भारत के लिए यह सीमा सांस्कृतिक एकता और आर्थिक जीवंतता की जीवनरेखा है। लेकिन इसे बाहरी ताकतें भी इस्तेमाल कर सकती हैं। जैसे:

  • पार-सीमा अपराध:नशीले पदार्थों, हथियारों और नकली नोटों की तस्करी एक स्थायी समस्या रही है।
  • उग्रवादी नेटवर्क:शत्रुतापूर्ण खुफिया एजेंसियाँ खुली सीमा का इस्तेमाल भारत-विरोधी गतिविधियों के लिए करती रही हैं।
  • आर्थिक बाधाएँ:नेपाल से बड़े पैमाने पर पलायन कभी-कभी भारत के सीमा ज़िलों में सामाजिक तनाव पैदा करता है।

फिर भी सीमा को बंद करना कोई समाधान नहीं है। इसके बजाय, स्मार्ट बॉर्डर मैनेजमेंट, बेहतर खुफिया समन्वय और संयुक्त भारत–नेपाल सुरक्षा तंत्र से openness को बनाए रखते हुए जोखिमों को घटाया जा सकता है। भारत को इस सीमा को ज़िम्मेदारी और संपत्ति दोनों की तरह देखना चाहिए—कुछ ऐसा जो जोड़ता है, बाँटता नहीं।

आगे की ओर देखने वाली भारतनेपाल नीति की दिशा

भारत के लिए सबक साफ़ है: नेपाल के साथ लापरवाही या उपेक्षा नहीं बरती जा सकती। नेपाल जैसा गहराई से जुड़ा पड़ोसी लगातार संवाद, सम्मान और संवेदनशीलता की माँग करता है। एक भविष्य-दृष्टि वाली विदेश नीति में निम्नलिखित कदम शामिल होने चाहिए:

  1. संप्रभुता का सम्मान:भारत को ऐसे कदमों से बचना चाहिए जो हस्तक्षेप की धारणा पैदा करें। नेपाल की स्वतंत्र निर्णय-प्रक्रिया का सम्मान करते हुए रचनात्मक विकल्प प्रस्तुतकरना goodwill बढ़ाएगा।
  2. बुनियादी ढाँचा संपर्क:भारत को सीमा-पार रेल, सड़क और ऊर्जा परियोजनाओं को तेज़ी से आगे बढ़ाना चाहिए, जिनका सीधा लाभ आम नेपाली नागरिकों को मिले।
  3. युवा और शिक्षा कूटनीति:छात्रवृत्तियाँ, तकनीक हस्तांतरण और कौशल कार्यक्रम नेपाली युवाओं की नई पीढ़ी को भारत को साझेदार की तरह देखने में मदद करेंगे।
  4. सांस्कृतिक कूटनीति:साझा सभ्यतागत विरासत को पर्यटन सर्किट (अयोध्या–जनकपुर, लुंबिनी–बोधगया) के माध्यम से बढ़ावा देना भावनात्मक रिश्तों को मजबूत करेगा।
  5. सुरक्षा सहयोग:खुफिया साझा करने, सीमा सुरक्षा और अपराध-निरोधी अभियानों के लिए संयुक्त तंत्र को और मज़बूत करना होगा।
  6. संतुलित कथा प्रबंधन:भारत को चीन की चमकदार परियोजनाओं का जवाब ठोस वादों और विश्वसनीय क्रियान्वयन से देना होगा। बीजिंग के विपरीत, नई दिल्ली की ताक़त भरोसे और सांस्कृतिक निरंतरता में है—इन्हें ही प्रभावी ढंग से इस्तेमाल करना होगा।

भारत की पड़ोस प्रथम नीति की कसौटी के रूप में नेपाल

नेपाल में हो रहे घटनाक्रम केवल एक छोटे हिमालयी देश की आंतरिक राजनीति का मामला नहीं हैं। यह भारत की विदेश नीति की परिपक्वता, पड़ोस प्रबंधन और भू-राजनीतिक दृष्टि की कसौटी है। अगर भारत नेपाल को अनदेखा करता है या उसकी संवेदनशीलताओं को गलत संभालता है, तो वह केवल एक भरोसेमंद पड़ोसी को ही नहीं खोएगा बल्कि चीन और पाकिस्तान को अपनी सीमाओं के ठीक पास पैर जमाने का मौका भी देगा।

नई दिल्ली के लिए रास्ता साफ़ है: नेपाल पर कड़ी नज़र रखे, उसके नए नेताओं से संवाद करे, जन-जन के रिश्ते मज़बूत बनाए और खुली सीमा को कमजोरी के बजाय ताक़त में बदले। भारत की विदेश नीति की सफलता केवल वॉशिंगटन, मॉस्को या बीजिंग में नहीं आँकी जाएगी, बल्कि यह भी देखी जाएगी कि काठमांडू के साथ रिश्तों को कैसे संभालता है।

नेपाल केवल पड़ोसी नहीं है—यह एक आईना है। भारत नेपाल के साथ जैसा व्यवहार करता है, वही बताता है कि भारत दक्षिण एशिया में खुद को कैसे देखता है: बड़े भाई की तरह या सच्चे साझेदार की तरह। चुनाव और ज़िम्मेदारी पूरी तरह नई दिल्ली के हाथ में है।

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