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सांचीपात पांडुलिपियां संरक्षण के लिए राष्ट्रपति भवन पुस्तकालय को सौंपी गईं

  • असमिया भाषा को शास्त्रीय दर्जा दिलाने की दिशा में एक और बड़ा कदम

नई दिल्ली। असमिया भाषा को प्राप्त शास्त्रीय दर्जे की गरिमा को और सुदृढ़ करने के उद्देश्य से श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र समिति द्वारा पांच प्राचीन सांचीपात (ताड़ के पत्तों पर लिखी गई पांडुलिपि) पांडुलिपियों का संग्रह मंगलवार को राष्ट्रपति भवन पुस्तकालय को औपचारिक रूप से सौंपा गया।
राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक औपचारिक समारोह में कलाक्षेत्र के सचिव सुदर्शन ठाकुर ने ये अमूल्य पांडुलिपियां राष्ट्रपति भवन की सचिव दीप्ति उमाशंकर को सौंपीं।
राष्ट्रपति भवन पुस्तकालय में अब जिन पांडुलिपियों को प्रदर्शित व संरक्षित किया जाएगा, उनमें ‘कीर्तन घोसा’ – महापुरुष श्रीमंत शंकरदेव रचित, श्री श्री दक्षिणपाट सत्र (माजुली) के पूज्य सत्राधिकार श्री श्री नानीगोपाल देव गोस्वामी द्वारा प्रदान। ‘आदि दशम’ – भागवत पुराण के दशम स्कंध पर आधारित शंकरदेव द्वारा रचित काव्यात्मक अनुवाद, श्री श्री नरुआ कुजी सत्र (मोरीगांव) के सत्राधिकार श्री श्री नित्यनंद देव गोस्वामी द्वारा प्रदान। ‘नामघोसा’ – महापुरुष श्री श्री माधवदेव द्वारा रचित, श्री श्री उत्तर कमलाबाड़ी सत्र (माजुली) के सत्राधिकार श्री श्री जनार्दन देव गोस्वामी द्वारा प्रदान। ‘भक्ति रत्नावली’ – संस्कृत ग्रंथ का महापुरुष माधवदेव द्वारा असमिया अनुवाद, श्री श्री कमलाबाड़ी सत्र (तीताबर) के श्री श्री भावकंता देव गोस्वामी द्वारा प्रदान। और, ‘गीत गोविंद’– कविराज चक्रवर्ती द्वारा असमिया में अनूदित जयदेव कृत संस्कृत ग्रंथ, जिसे स्वर्गदेव रुद्र सिंघ के दरबार में रचा गया था, सुरेन फुकन (जोरहाट) द्वारा कलाक्षेत्र को प्रदान किया गया और अब राष्ट्रपति भवन को सौंपा गया है।
कलाक्षेत्र के सचिव ने इन पांडुलिपियों के संरक्षण और प्रदर्शन में सहयोग देने वाले पूज्य सत्राधिकारों और सभी व्यक्तियों के प्रति हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त की है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि इस ऐतिहासिक पहल से असमिया भाषा की समृद्ध विरासत को नई ऊर्जा और व्यापक पहचान मिलेगी।
इस अवसर पर असम भवन, नई दिल्ली के वरिष्ठ अधिकारीगण, असम सरकार तथा भारत सरकार के प्रतिनिधि भी उपस्थित रहे।
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्व सरमा के संरक्षण एवं मुख्य सचिव रवि कोटा के निर्देश पर कलाक्षेत्र समिति ने राज्य भर के विभिन्न वैष्णव मठों (सत्रों) से समन्वय स्थापित कर ये दुर्लभ संचीपात पांडुलिपियां एकत्र कीं हैं।
साभार – हिस

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