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रिपोर्ट तैयार करने के नाम पर लेखपाल, आरआई और अन्य अफसर ले रहे मोटी रिश्वत, फिर भी नहीं हो रहा समय पर कार्य
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में जमीन विवादों, दाखिल-खारिज, विरासत और संपत्ति से जुड़ी शिकायतों के समाधान के लिए सरकार ने जिस इंटीग्रेटेड ग्रिवांस रिड्रेसल सिस्टम (IGRS) की शुरुआत की थी, वह अब भ्रष्टाचार का अड्डा बनता जा रहा है। यह डिजिटल प्लेटफॉर्म, जो जनता की समस्याओं को सरलता से और समय पर हल करने के लिए बनाया गया था, अब उन्हीं जनता के लिए परेशानी का कारण बनता जा रहा है।
रिश्वत के बिना नहीं होती रिपोर्ट तैयार
ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरी क्षेत्रों तक, रिपोर्ट तैयार करवाने के नाम पर लेखपाल, राजस्व निरीक्षक (आरआई) और अन्य संबंधित अधिकारियों द्वारा खुलेआम रिश्वत की मांग की जा रही है। पीड़ितों का आरोप है कि रिपोर्ट के लिए 5,000 रुपये से लेकर 20,000 रुपये तक की वसूली की जा रही है। अगर कोई पैसा नहीं देता, तो उसका मामला महीनों तक फाइलों में दबा रहता है।
रुपये लेने के बाद भी नहीं बदलती नीयत
सबसे हैरानी की बात यह है कि जब अधिकारी रिश्वत ले भी लेते हैं, तब भी समय पर कार्यवाही नहीं होती। कई मामलों में महीनों बीत जाते हैं और तब जाकर कहीं नापजोख की प्रक्रिया शुरू होती है। कई पीड़ितों ने यह भी बताया कि अधिकारियों द्वारा बार-बार अलग-अलग बहाने बनाकर अतिरिक्त पैसे मांगे जाते हैं।
डिजिटल प्लेटफॉर्म सिर्फ दिखावा?
सरकार ने IGRS को एक पारदर्शी और जनता को लाभ देने वाला मंच बताया था, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। ऑनलाइन आवेदन करने के बाद भी कामकाज का पूरा दारोमदार संबंधित क्षेत्र के लेखपाल और आरआई पर ही रहता है। ऐसे में भ्रष्टाचार को खुली छूट मिल जाती है।
क्या वाकई बदल रही है व्यवस्था?
राजस्व विभाग की शिकायत प्रणाली, जो भ्रष्टाचार मुक्त शासन की दिशा में एक अहम कदम मानी जा रही थी, अब जनता का विश्वास खो रही है। कई जिलों में यह शिकायतें सामने आ चुकी हैं कि अधिकारियों द्वारा पहले जनता को गुमराह किया जाता है और फिर उनसे मोटी रकम ऐंठी जाती है। जिन लोगों के पास पैसे नहीं होते, उनके आवेदन सालों तक लंबित पड़े रहते हैं।
आमजन का आक्रोश और मांग
जमीन से जुड़े मामलों में हो रहे इस खुलेआम भ्रष्टाचार को लेकर आमजन में भारी आक्रोश है। जनता की मांग है कि शासन इस मामले को गंभीरता से ले और एक उच्च स्तरीय जांच कराकर दोषी अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई करे। साथ ही, ऐसी व्यवस्था बनाई जाए जिसमें आवेदन की समयसीमा सुनिश्चित हो और रिपोर्ट प्रक्रिया पूरी तरह डिजिटल व निगरानी में हो।
यदि सरकार वास्तव में ‘भ्रष्टाचार मुक्त शासन’ की बात करती है, तो IGRS सिस्टम में फैले इस घातक भ्रष्टाचार की सफाई करना बेहद जरूरी है। नहीं तो यह प्लेटफॉर्म भी अन्य सरकारी योजनाओं की तरह जनता की उम्मीदों को तोड़ने वाला साबित होगा।