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CIBIL Score आर्थिक पुनर्वास में सबसे बड़ी बाधा

  • पिता के खराब सिविल स्कोर का बच्चों के शिक्षा ऋण तक पर असर

नई दिल्ली, 15 जुलाई। देश में आर्थिक तौर पर कमजोर हुए लाखों लोगों के लिए सिविल स्कोर (CIBIL Score) अब सबसे बड़ी रुकावट बनकर सामने आ रहा है। एक ओर जब आमदनी होती है, तो सरकार टैक्स के रूप में हिस्सेदारी लेती है, लेकिन जब आर्थिक संकट आता है, तो न तो पर्याप्त सरकारी सहयोग मिलता है और न ही पुनः खड़ा होने का अवसर।

विशेषज्ञों का कहना है कि सिविल स्कोर व्यवस्था को या तो बंद किया जाना चाहिए या इसमें आमूलचूल सुधार की जरूरत है, क्योंकि यह व्यवस्था समाज में आर्थिक पुनर्जीवन की राह में बाधा बन गई है।

हाल ही में कई मामलों में देखा गया है कि यदि परिवार का कोई सदस्य सहआवेदक (co-applicant) है और उसका सिविल स्कोर खराब है, तो छात्रों को एजुकेशन लोन भी नहीं मिल पा रहा। यह स्थिति बच्चों के भविष्य पर भी सीधा असर डाल रही है।

एक अभिभावक ने बताया, “कोरोना काल में हमारी आर्थिक स्थिति डगमगाई और कुछ लोन चूक गए। अब जब बच्चा पढ़ाई के लिए लोन लेना चाहता है, तो केवल मेरे सिविल स्कोर के कारण उसे लोन नहीं दिया जा रहा।”

वित्तीय विशेषज्ञों का कहना है कि सिविल स्कोर को सिर्फ एक पक्षीय वित्तीय दस्तावेज मानना गलत है। इसमें व्यक्ति की वर्तमान स्थिति, रोजगार का अवसर, ऋण चुकाने की तत्परता जैसे मानकों को भी शामिल किया जाना चाहिए।

सामाजिक संगठनों और कुछ सांसदों ने भी सिविल स्कोर सिस्टम की समीक्षा की मांग की है। उनका कहना है कि जिस व्यवस्था का उद्देश्य वित्तीय अनुशासन बनाए रखना था, वह अब गरीबों और मध्यम वर्ग के लिए ‘वित्तीय जेल’ बनती जा रही है।

सिविल स्कोर (CIBIL Score) की मौजूदा प्रणाली आज उन लाखों लोगों के लिए बाधा बन गई है, जो आर्थिक संकट से उबरकर दोबारा खड़े होना चाहते हैं। इसके कई नकारात्मक प्रभाव सीधे तौर पर न केवल व्यक्तिगत जीवन, बल्कि सामाजिक और आर्थिक ढांचे को भी प्रभावित कर रहे हैं:

1. बेरोजगारों के लिए रास्ता बंद

स्वरोजगार या छोटा व्यवसाय शुरू करने के लिए भी लोन जरूरी होता है, लेकिन खराब स्कोर के कारण ऐसे व्यक्तियों को फाइनेंस की सुविधा नहीं मिलती, जिससे बेरोजगारी की समस्या और गहराती है।

2. प्री-लोन चेकिंग से स्कोर में गिरावट

कई बार लोग विभिन्न संस्थानों से सिर्फ लोन पात्रता की जांच कराते हैं, लेकिन हर हार्ड इनक्वायरी से स्कोर गिरता है। इस व्यवस्था से सूचना लेने का अधिकार भी प्रभावित होता है।

3. मानसिक तनाव और सामाजिक कलंक

कम स्कोर वाला व्यक्ति स्वयं को अपमानित महसूस करता है। बैंक से बार-बार रिजेक्शन मिलने से आत्मसम्मान पर आघात होता है और व्यक्ति डिप्रेशन तक का शिकार हो सकता है।

4. अस्थायी गलती की स्थायी सजा

किसी एक कठिन समय या परिस्थिति में हुई लोन चूक का असर वर्षों तक स्कोर पर बना रहता है, जबकि व्यक्ति आर्थिक रूप से स्थिर हो चुका होता है। यह प्रणाली दूसरा मौका ही नहीं देती।

5. ग्रामीण और कम शिक्षित वर्ग के लिए और मुश्किल

जिन लोगों को स्कोर की तकनीकी समझ नहीं है, वे इसका सुधार भी नहीं कर पाते। नतीजतन, उन्हें वित्तीय संस्थानों से लगातार ठुकराया जाता है।

6. महिलाओं और सह-आवेदकों को द्वितीयक बना देना

परिवार में किसी एक सदस्य की गलती का असर पूरे परिवार पर पड़ता है, विशेषकर जब महिलाएं या युवा केवल सह-आवेदक होते हुए भी ऋण से वंचित रह जाते हैं।

7. ऋणदाता का एकतरफा अधिकार

स्कोर आधारित प्रणाली में पूरी ताकत बैंकों के पास होती है, जबकि ग्राहक के पास कोई अपील या तर्क का मंच नहीं होता कि उसने चूक किन परिस्थितियों में की थी।

क्या हो सकती है राह?

  • सिविल स्कोर में सुधार का अवसर देने के लिए एक ‘रीस्टार्ट पॉलिसी’ बनाई जाए।
  • सहआवेदक के स्कोर को प्राथमिक शर्त न माना जाए।
  • शिक्षा, स्वास्थ्य, और आत्मनिर्भरता से जुड़े ऋणों में लचीलापन लाया जाए।
  • सरकारी गारंटी योजनाओं का विस्तार किया जाए ताकि कम स्कोर वाले भी जरूरी वित्तीय सहायता ले सकें।

वक्त की मांग है कि वित्तीय समावेशन (financial inclusion) के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए सिविल स्कोर जैसे मानकों की पुनर्समीक्षा की जाए, ताकि हर नागरिक को एक बार फिर आगे बढ़ने का अवसर मिल सके।

 

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