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दाहोद इंजन कारखाने पर कांग्रेस के सवाल पर रेल मंत्रालय का जवाब, कहा- सारी प्रक्रिया पारदर्शी

नई दिल्ली। गुजरात के दाहोद में 26 मई को हुए रेल इंजन कारखाने के उद्घाटन को लेकर कांग्रेस नेता एवं पूर्व सांसद बृजेंद्र सिंह के लगाए आरोपों पर रेल मंत्रालय ने जवाब दिया है। मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि 9,000 हॉर्स पावर वाले इलेक्ट्रिक इंजनों के निर्माण और रखरखाव के लिए पूरी निविदा प्रक्रिया पारदर्शी थी और इस प्रक्रिया में किसी भी तरह का नियम उल्लंघन या पक्षपात नहीं हुआ है।

रेल मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि विश्व स्तर पर केवल दो कंपनियां एल्सटॉम और सीमेंस ऐसी हैं, जो इतनी उच्च क्षमता वाले इंजनों को डिजाइन और निर्माण करने में सक्षम हैं। दोनों कंपनियों ने इस निविदा में भाग लिया था। तकनीकी मूल्यांकन में दोनों को समान स्तर पर रखा गया, जबकि वित्तीय मूल्यांकन के बाद सबसे कम कीमत देने वाली कंपनी को ठेका दिया गया। निविदा प्रक्रिया के दौरान किसी भी शर्त में बदलाव नहीं किया गया और पूरी प्रक्रिया भारतीय रेलवे द्वारा अपनाई जाने वाली पारंपरिक प्रणाली के अनुसार ही संचालित की गई।

रेलवे ने यह भी स्पष्ट किया कि इस निविदा प्रक्रिया में रेल मंत्री की कोई भूमिका नहीं थी और मूल्यांकन कार्य पूरी तरह से विशेषज्ञ अधिकारियों की टीम द्वारा किया गया। इससे हितों के टकराव की संभावना पूरी तरह से नकार दी गई है। यह परियोजना ‘जीवन चक्र लागत’ (लाइफ साइकल बेस्ड प्रेक्योरमेंट) मॉडल पर आधारित है, जिसका उद्देश्य उत्पाद की विश्वसनीयता और यात्रियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करना है।

दाहोद में बनने वाले इंजनों में लगभग 89 फीसदी कंपोनेंट्स भारत में ही निर्मित किए जा रहे हैं। रेल मंत्रालय ने कहा कि लोकोमोटिव एक अत्यंत जटिल मशीन है और उसके कंपोनेंट्स का निर्माण देश के विभिन्न हिस्सों में होता है। भारत ने बीते एक दशक में विनिर्माण क्षेत्र में जो प्रगति की है, उसने देश को इस स्तर तक पहुंचने में सक्षम बनाया है कि अब वह विश्व के कुछ गिने-चुने देशों में शामिल हो गया है जो इतनी जटिल मशीनों के पुर्जे खुद बना सकते हैं। रेल मंत्रालय ने यह भी बताया कि इन इंजनों का रखरखाव देश के चार प्रमुख डिपो- विशाखापत्तनम, रायपुर, खड़गपुर और पुणे में किया जाएगा।

उल्लेखनीय है कि बृजेंद्र सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सरकार पर ‘मेक इन इंडिया’ के नाम पर ‘स्क्रू ड्राइवर टेक्नोलॉजी’ लागू करने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा कि यह परियोजना पूरी तरह से स्वदेशी निर्माण का दावा करती है, लेकिन हकीकत में यह सिर्फ एसेंबली प्लांट बनकर रह गई। प्लांट में दूसरे स्थानों से पुर्जे मंगाकर सिर्फ उन्हें जोड़ा जाएगा और टेस्ट किया जाएगा, जबकि क्रिटिकल कंपोनेंट्स का निर्माण सीमेंस के अपने नासिक, औरंगाबाद और मुंबई स्थित प्लांट्स में होगा।

सिंह ने यह भी आरोप लगाया था कि इस करार में पारदर्शिता का अभाव है और यह हितों के टकराव का मामला भी बनता है, क्योंकि वर्तमान रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव राजनीति में आने से पहले सीमेंस इंडिया में उपाध्यक्ष के पद पर काम कर चुके हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या सीमेंस को यह ठेका देना सिर्फ संयोग है या इसके पीछे कोई और वजह है?
साभार – हिस

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