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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में बड़े नीतिगत बदलाव, अब विश्वविद्यालय आसानी से खरीद सकेंगे विशिष्ट शोध उपकरण

नई दिल्ली। देश में नवाचार और अनुसंधान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने रविवार को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में कई बड़े नीतिगत बदलावों की घोषणा की।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने राष्ट्रीय मीडिया केंद्र में प्रेस वार्ता के दौरान इन सुधारों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इन निर्णयों से शोधकर्ताओं, वैज्ञानिकों और अकादमिक संस्थानों को लंबे समय से चली आ रही अड़चनों से राहत मिलेगी। डॉ. सिंह ने बताया कि अब विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और वैज्ञानिक संस्थानों के निदेशकों को यह अधिकार होगा कि वे विशिष्ट शोध उपकरणों की गैर-जीईएम माध्यम से भी खरीद कर सकें। पहले केवल सरकारी ई-मार्केटप्लेस से खरीद की अनिवार्यता थी, भले ही वहां आवश्यक वस्तु उपलब्ध न हो।
इसके अलावा, सामान्य वित्तीय नियमों में भी संशोधन किया गया है। अब प्रत्यक्ष खरीद की सीमा एक लाख रुपये से बढ़ाकर दो लाख रुपये कर दी गई है। विभागीय समितियों द्वारा की जाने वाली खरीद की सीमा एक लाख से दस लाख रुपये के स्थान पर अब दो लाख से पच्चीस लाख रुपये होगी। वहीं सीमित निविदा और खुली निविदा की सीमा पचास लाख रुपये से बढ़ाकर एक करोड़ रुपये कर दी गई है। संस्थानों के प्रमुख अब दो सौ करोड़ रुपये तक की वैश्विक निविदाएं भी स्वीकृत कर सकेंगे।
डॉ. सिंह ने कहा, “हमने फाइलों के बोझ को कम करने का प्रयास किया है। यह विश्वास पर आधारित व्यवस्था है।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह स्वतंत्रता जिम्मेदारी के साथ दी गई है और इसका उपयोग ईमानदारी से किया जाना चाहिए। डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि इन नीतियों से देश की नवाचार क्षमता को मजबूती मिलेगी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की पहचान एक नवाचार-प्रेरित अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित होगी। उन्होंने यह भी कहा कि जैसे अंतरिक्ष और परमाणु क्षेत्र में उदारीकरण से सकारात्मक परिणाम सामने आए, वैसे ही अनुसंधान क्षेत्र में भी यह सुधार क्रांतिकारी सिद्ध होंगे।
यह सुधार प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के कार्यालय द्वारा आयोजित विस्तृत विचार-विमर्श के बाद सामने आए हैं। देश के 13 आईआईटी और प्रमुख अनुसंधान संस्थानों की राय इन निर्णयों में शामिल की गई थी। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की एक हालिया रिपोर्ट और पीएसए कार्यालय की प्रस्तुति ने यह दिखाया कि पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए नियम किस प्रकार अनुसंधान में बाधा बन रहे थे। नई नीतियों से न केवल शोध कार्यों में तेजी आएगी, बल्कि उपकरणों तक सरल पहुंच और युवाओं में शोध के प्रति उत्साह भी बढ़ेगा। विशेष रूप से स्टार्टअप, युवा शोधकर्ता और छात्र इससे लाभान्वित होंगे, जो अब तक ढांचागत बाधाओं से जूझते रहे हैं। यह घोषणा सरकार के 11 वर्षों की उपलब्धियों की श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।
इस अवसर पर प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार प्रो. ए. के. सूद, जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. राजेश एस. गोखले, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अतिरिक्त सचिव सुनील कुमार तथा विभिन्न विभागों के वैज्ञानिक और वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे।
साभार – हिस

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