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बिहार विधानसभा चुनाव 2025: सत्ता की लड़ाई

लेखिका-संगीता शुक्ला,

नई दिल्ली।बिहार विधानसभा चुनाव, जो लगभग सात महीने बाद होने वाला है, संभावित परिणामों को लेकर जबरदस्त अटकलों को जन्म दे रहा है। वर्तमान में, जनता दल (यूनाइटेड) के नेता नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री हैं, जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के समर्थन से एक अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। जैसे-जैसे राजनीतिक हलचल तेज हो रही है, नेतृत्व का सवाल चर्चाओं के केंद्र में बना हुआ है, और भाजपा अपने स्वयं के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार को पेश करने के बारे में पुनर्विचार कर सकती है।
पिछले कुछ वर्षों में, बिहार की राजनीतिक स्थिति बदलते गठबंधनों और सत्ता संघर्षों से प्रभावित रही है। भाजपा और जद (यू) ने पिछले लोकसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन किया था, 40 में से 39 सीटें जीतकर। हालांकि, राज्य विधानसभा चुनाव अक्सर अलग होते हैं, जो क्षेत्रीय चिंताओं, जातीय समीकरणों और सत्तारूढ़ सरकार के प्रदर्शन से प्रभावित होते हैं। बिहार के पिछड़ेपन को लेकर आलोचनाओं के बावजूद, नीतीश कुमार ने अपनी राजनीतिक कुशलता का प्रदर्शन किया है और 2005 से, 2017 की संक्षिप्त अवधि को छोड़कर, मुख्यमंत्री पद पर बने हुए हैं।
नीतीश कुमार की राजनीतिक यात्रा और शासन
नीतीश कुमार का शासन बुनियादी ढांचे के विकास और सामाजिक कल्याण नीतियों का मिश्रण रहा है। उनके कार्यकाल में सड़क कनेक्टिविटी, ग्रामीण विद्युतीकरण और स्कूल जाने वाली लड़कियों के लिए साइकिल योजना जैसी योजनाओं में सुधार हुआ है। हालांकि, बिहार अब भी बुनियादी चुनौतियों से जूझ रहा है, जिसमें कमजोर औद्योगीकरण, अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं और संघर्षरत शिक्षा प्रणाली शामिल हैं। “बीमारू राज्य” शब्द, जो बिहार की पिछड़ेपन को दर्शाता है, आर्थिक और सामाजिक सुधार के प्रयासों के बावजूद विवाद का विषय बना हुआ है।
नीतीश कुमार की बिहार की राजनीतिक अस्थिरता में बने रहने की क्षमता उनके रणनीतिक गठबंधनों से जुड़ी है। भाजपा के साथ उनका संबंध कई बार बना और टूटा। 2013 में, उन्होंने नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के विरोध में भाजपा से नाता तोड़ लिया, लेकिन 2017 में राजद और कांग्रेस के महागठबंधन से अलग होकर फिर भाजपा के साथ आ गए।
भाजपा की दुविधा: मुख्यमंत्री उम्मीदवार पेश करना या गठबंधन जारी रखना?
भाजपा नीतीश कुमार के साथ अपने गठबंधन को लेकर दोराहे पर खड़ी है। जहां गठबंधन बनाए रखना स्थिरता और एक आजमाई हुई चुनावी रणनीति प्रदान करता है, वहीं पार्टी बिहार में अपनी अलग पहचान स्थापित करने और एक मुख्यमंत्री उम्मीदवार प्रस्तुत करने पर भी विचार कर सकती है। भाजपा का बढ़ता मतदाता आधार और विचारधारात्मक अपील उसे जद (यू) के प्रभाव से बाहर निकलने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। हालांकि, यह कदम जोखिमभरा भी हो सकता है, क्योंकि नीतीश कुमार की कुर्मी और कोइरी समुदायों में मजबूत पकड़ और उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि एक महत्वपूर्ण चुनावी कारक बनी हुई है।
दूसरी ओर, तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाला महागठबंधन (एमजीबी) सत्ता विरोधी लहर को भुनाने की कोशिश कर रहा है। हाल के जनमत सर्वेक्षणों से संकेत मिलता है कि महागठबंधन को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) पर हल्की बढ़त मिल सकती है। तेजस्वी यादव बेरोजगारी, शिक्षा और कल्याणकारी मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर एक मजबूत विपक्षी नेता के रूप में उभरे हैं। उनकी चुनावी रणनीति यादव-मुस्लिम-दलित वोट बैंक को मजबूत करने पर टिकी हुई है, जो पारंपरिक रूप से राजद का गढ़ रहा है।
प्रमुख चुनौतियां और मतदाता चिंताएं
बिहार के मतदाता जातीय समीकरण, विकास के मुद्दे और रोजगार के अवसरों से प्रभावित होते हैं। आगामी चुनाव को आकार देने वाले कुछ महत्वपूर्ण कारक इस प्रकार हैं:
1. रोजगार और प्रवास: बिहार की उच्च बेरोजगारी दर और अन्य राज्यों में काम करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रवास एक गंभीर चिंता का विषय है। कोविड-19 महामारी ने प्रवासी श्रमिकों की कमजोरियों को उजागर किया और स्थानीय रोजगार के अवसरों की आवश्यकता को रेखांकित किया।

2. कृषि संकट: कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था होने के कारण बिहार के किसान अनियमित मानसून, सिंचाई सुविधाओं की कमी और सरकारी सहायता के अभाव जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं।

3. शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं: सुधार के बावजूद, बिहार अब भी साक्षरता दर और स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में पिछड़ा हुआ है। गुणवत्तापूर्ण शैक्षणिक संस्थानों की कमी और कुशल रोजगार के अवसरों के अभाव में छात्र अन्य राज्यों की ओर पलायन करने के लिए मजबूर हैं।

4. जातीय और पहचान आधारित राजनीति: बिहार में राजनीतिक समर्थन अक्सर जातिगत समीकरणों द्वारा निर्धारित होता है। भाजपा ने गैर-यादव ओबीसी समुदायों में अपनी पैठ बनाई है, जबकि राजद अपने पारंपरिक मुस्लिम-यादव वोट बैंक पर निर्भर है।

आगे की राह: कौन बनेगा बिहार का अगला मुख्यमंत्री?
जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएगा, सभी दल अपनी प्रचार रणनीतियों को तेज करेंगे। भाजपा विकास के एजेंडे और राष्ट्रवादी अपील पर ध्यान केंद्रित करेगी, जबकि जद (यू) स्थिरता और शासन पर जोर देगा। वहीं, महागठबंधन मौजूदा सरकार के प्रति असंतोष को भुनाने की कोशिश करेगा।
अंततः, बिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम कई कारकों पर निर्भर करेगा—नेतृत्व विकल्प, गठबंधन समीकरण, मतदाता भावनाएं और अंतिम समय के राजनीतिक समीकरण। चाहे नीतीश कुमार अपनी सत्ता बनाए रखें, भाजपा अपनी स्थिति मजबूत करे, या महागठबंधन वापसी करे, बिहार का राजनीतिक परिदृश्य एक रोमांचक मुकाबले के लिए तैयार है।

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