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भारत की राष्ट्रीय पहचान के प्रतीक हैं दोनो
नई दिल्ली,भारत की राष्ट्रीय अस्मिता के दो महत्वपूर्ण स्तंभ, राष्ट्रगान “जन गण मन” और राष्ट्रगीत “वंदे मातरम्”, देश की एकता, संस्कृति और संघर्ष की अमूल्य धरोहर हैं। ये दोनों गीत भारत की स्वतंत्रता संग्राम की गूंज हैं और हर नागरिक के मन में देशभक्ति की भावना को जाग्रत करते हैं।
राष्ट्रगान: ‘जन गण मन’ की गूंज
भारत का राष्ट्रगान “जन गण मन” गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित है, जिसे पहली बार 27 दिसंबर 1911 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में गाया गया था। यह गीत भारत की विविधता में एकता और राष्ट्रीय गौरव को दर्शाता है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा ने “जन गण मन” को राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार किया। इसे पूरा गाने में 52 सेकंड का समय लगता है। यह हर राष्ट्रीय समारोह, सरकारी कार्यक्रमों, स्कूलों और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की पहचान का प्रतीक बनकर गूंजता है।
राष्ट्रगीत: ‘वंदे मातरम्’ का गौरवशाली इतिहास
राष्ट्रगीत “वंदे मातरम्” भारत के स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा माना जाता है। इसे बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने उपन्यास “आनंदमठ” (1882) में लिखा था। यह गीत 1905 के बंग-भंग आंदोलन और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना।
24 जनवरी 1950 को “वंदे मातरम्” को राष्ट्रगीत का दर्जा दिया गया। हालांकि, इसे राष्ट्रगान की तरह अनिवार्य नहीं किया गया, लेकिन इसका सांस्कृतिक महत्व आज भी उतना ही प्रबल है।
राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत का महत्व
राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत दोनों ही भारत की आत्मा को प्रतिबिंबित करते हैं। जहां “जन गण मन” भारत की संवैधानिक मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय पहचान है, वहीं “वंदे मातरम्” देश की स्वतंत्रता संग्राम की आवाज है। दोनों गीतों ने भारतीय नागरिकों को राष्ट्रीय गौरव और एकता के सूत्र में बांधने का कार्य किया है।
संवैधानिक और कानूनी पहलू
भारतीय संविधान में राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत का उल्लेख किया गया है, लेकिन राष्ट्रगीत को कानूनी रूप से राष्ट्रगान के समान अनिवार्यता नहीं दी गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने विभिन्न फैसलों में राष्ट्रगान के सम्मान को अनिवार्य बताते हुए इसे सार्वजनिक स्थानों, सिनेमाघरों और सरकारी आयोजनों में बजाने का समर्थन किया है।