नई दिल्ली। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद- राष्ट्रीय विज्ञान संचार और नीति अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर) ने यहां अपने परिसर में “भारत में विज्ञान संचार की आवश्यकता और महत्व” पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य भारतीय भाषाओं में विज्ञान संचार में मौजूदा प्रयासों का मूल्यांकन करना और भारत के विविध भाषाई समुदायों में विज्ञान के साथ सार्वजनिक जुड़ाव बढ़ाने की रणनीतियों का पता लगाना था।
अपने स्वागत भाषण में सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर की निदेशक प्रो. रंजना अग्रवाल ने वैज्ञानिक अनुसंधान और समाज के बीच की खाई को पाटने में विज्ञान संचार की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने समावेशिता और व्यापक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान संचार के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सच्ची वैज्ञानिक प्रगति समावेशी होती है। क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान को बढ़ावा देना यह सुनिश्चित करता है कि ज्ञान समाज के हर कोने तक पहुंचे।
पीएमई प्रमुख डॉ. नरेश कुमार ने परिचयात्मक टिप्पणी करते हुए क्षेत्रीय भाषाओं में वैज्ञानिक ज्ञान के प्रसार की आवश्यकता पर बल दिया। सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर के वरिष्ठ वैज्ञानिक और भारतीय भाषा परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ. मनीष मोहन गोरे ने कहा कि देश की क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की प्रामाणिक जानकारी को प्रसारित करने के लिए जन सहभागिता आवश्यक है।
कार्यशाला में विभिन्न वैज्ञानिक और मीडिया संस्थानों के प्रतिष्ठित वक्ताओं द्वारा विचारोत्तेजक चर्चा की गई। वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग के सहायक निदेशक दीपक कुमार ने “विज्ञान शब्दावली का वर्तमान स्वरूप, समस्याएं और उपयोगिता” विषय पर चर्चा की। माइक्रोसॉफ्ट के डिजिटल मीडिया संचार प्रमुख बालेंदु शर्मा ने “एआई और डिजिटल दुनिया का वर्तमान और भविष्य” विषय पर जानकारी दी। राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, भारत के कार्यकारी सचिव डॉ. संतोष कुमार शुक्ला ने “भारतीय भाषाओं में विज्ञान लेखन और लोकप्रिय विज्ञान साहित्य” पर चर्चा की। डिजिटल और सोशल मीडिया विशेषज्ञ नेहा त्रिपाठी ने “वैज्ञानिक सामग्री के विभिन्न स्रोत और उनकी प्रामाणिकता” पर विस्तार से चर्चा की। इसके अलावा, डॉ. कृष्ण नंद पांडे, पूर्व वैज्ञानिक-एफ, आईसीएमआर ने “भारतीय समाज में जागरूकता पैदा करने में स्वास्थ्य संचार की भूमिका” पर प्रकाश डाला।
दोपहर के सत्र में क्षेत्रीय दृष्टिकोणों पर चर्चा की गई। आकाशवाणी के कार्यक्रम अधिकारी शिवनंदन ने “रेडियो और कृषि विज्ञान कार्यक्रम: प्रकृति और संभावनाएं” पर अंतर्दृष्टि साझा की। विज्ञान लेखक समीर गांगुली ने “विज्ञान कथा कहानियों के सामाजिक संदर्भ” पर प्रकाश डाला। कार्यशाला ने विशेषज्ञों, संचारकों और प्रतिभागियों को सार्थक बातचीत में शामिल होने के लिए एक गतिशील मंच प्रदान किया। चर्चाओं से भारतीय भाषाओं में विज्ञान संचार को मजबूत करने के लिए नीतिगत सिफारिशें प्राप्त हुईं, जिसमें अकादमिक-सरकार-मीडिया सहयोग बढ़ाने और विज्ञान संचारकों के बीच क्षमता निर्माण के लिए रणनीतियों पर जोर दिया गया। इस कार्यक्रम में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, गुरुग्राम विश्वविद्यालय और सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर के संकाय और छात्रों के साथ-साथ वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं सहित 40 प्रतिभागियों ने भाग लिया। कुल आठ वक्ताओं ने भाग लिया, जिनमें से छह ऑनलाइन और दो व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए, जिससे विचारों का समृद्ध आदान-प्रदान हुआ।
कार्यक्रम का समापन छात्रों के साथ एक संवादात्मक सत्र और प्रश्नोत्तर दौर के साथ हुआ, जिसके बाद सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर के वरिष्ठ वैज्ञानिक और कार्यशाला के समन्वयक डॉ. मनीष मोहन गोरे ने समापन भाषण दिया। कार्यशाला ने भारत में सुलभ और समावेशी विज्ञान संचार को बढ़ावा देने के लिए सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर की प्रतिबद्धता की पुष्टि की।
साभार – हिस