नई दिल्ली ,भारत और अमेरिका ने अपने द्विपक्षीय व्यापार को 2030 तक दोगुना से अधिक बढ़ाकर 500 बिलियन डॉलर तक पहुंचाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। यह लक्ष्य आर्थिक सहयोग में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है और दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों के बीच मजबूत होते कूटनीतिक और रणनीतिक संबंधों को दर्शाता है। व्यापार और निवेश इस साझेदारी के प्रमुख स्तंभ रहे हैं, और बढ़ती आर्थिक पारस्परिकता से दोनों देशों को लाभ होने की उम्मीद है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत और अमेरिका के बीच करीबी संबंधों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से उन्होंने अमेरिका की रिकॉर्ड नौ यात्राएँ की हैं, जो किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा सबसे अधिक हैं। उनकी नवीनतम यात्रा 12 फरवरी 2025 को हुई थी। विभिन्न अमेरिकी प्रशासन के साथ उनकी सक्रिय भागीदारी, विशेष रूप से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान, कूटनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा सहयोग को मजबूत करने में सहायक रही है। मोदी की वैश्विक कूटनीतिक पहुंच ने भारत को एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय शक्ति के रूप में स्थापित किया है, और अमेरिका ने विभिन्न क्षेत्रों में भारत की रणनीतिक भूमिका को स्वीकार किया है।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका-भारत संबंधों में महत्वपूर्ण सुधार देखने को मिला। दोनों नेताओं ने व्यापार विस्तार, निवेश अवसरों को बढ़ाने, तकनीकी सहयोग को आगे बढ़ाने और रक्षा साझेदारी को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया। आपसी हित के प्रमुख क्षेत्रों में आतंकवाद-रोधी प्रयास, इंडो-पैसिफिक सुरक्षा और लोगों के बीच संबंध शामिल रहे।
ट्रंप-मोदी युग में कई ऐतिहासिक समझौतों पर हस्ताक्षर हुए, जिनमें अमेरिका-भारत व्यापार भागीदारी को बढ़ाने, रक्षा सहयोग को मजबूत करने और व्यापार असंतुलन को दूर करने पर बातचीत शामिल थी। दोनों देशों ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता, अंतरिक्ष अन्वेषण और सेमीकंडक्टर निर्माण में सहयोग को भी बढ़ावा दिया।
अमेरिका के साथ संबंधों को मजबूत करने के साथ ही, भारत ने अपनी विदेश नीति में संतुलन बनाए रखा है, विशेष रूप से रूस और चीन के साथ संबंधों का प्रबंधन करते हुए। रूस के साथ लंबे समय से रक्षा और ऊर्जा साझेदारी होने के बावजूद, भारत ने अपने आर्थिक और सैन्य संबंधों में विविधता लाने का प्रयास किया है ताकि किसी एक देश पर अत्यधिक निर्भरता से बचा जा सके। मोदी सरकार ने रक्षा खरीद और ऊर्जा सहयोग के मामले में रूस के साथ संबंध स्थिर बनाए रखे हैं।
हालांकि, चीन और पाकिस्तान के साथ भारत के संबंधों में कई बाधाएँ रही हैं, खासकर सीमा विवादों और भू-राजनीतिक तनावों के कारण। भारत और चीन के बीच व्यापार परस्पर निर्भरता के बावजूद, राजनयिक संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं। प्रौद्योगिकी और फार्मास्युटिकल क्षेत्रों में व्यापारिक लेन-देन महत्वपूर्ण हैं, लेकिन सीमा सुरक्षा और आर्थिक आत्मनिर्भरता की भारत की नीति ने इन संबंधों को जटिल बना दिया है।
मोदी के नेतृत्व में, भारत एक उभरती हुई वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित हो चुका है और अमेरिका, रूस और चीन जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहा है। भारत की आर्थिक नीतियाँ, निवेश वातावरण और विनिर्माण क्षमताएँ वैश्विक रुचि का केंद्र बन गई हैं। देश डिजिटल नवाचार, रक्षा उत्पादन और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं का प्रमुख केंद्र बनने की दिशा में अग्रसर है।
इसके अतिरिक्त, भारत ने अरब देशों के साथ संबंधों को भी मजबूत किया है, जिससे ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने और व्यापार साझेदारी का विस्तार करने में मदद मिली है। खाड़ी क्षेत्र भारत के लिए एक महत्वपूर्ण भागीदार बना हुआ है, जहाँ व्यापार, निवेश और प्रवासी भारतीयों का बड़ा योगदान है। मोदी की कूटनीतिक सक्रियता ने भारत की मध्य पूर्व में स्थिति को मजबूत किया है, जिससे भारत अपने आर्थिक और रणनीतिक हितों की रक्षा करते हुए विभिन्न पक्षों के बीच संतुलन बनाए रख सका है।
पहली बार, वैश्विक मंच पर भारत की प्रतिष्ठा इतनी ऊँचाई पर पहुँच गई है कि कोई भी बड़ी शक्ति इसे अनदेखा नहीं कर सकती। मोदी के नेतृत्व ने भारत को पश्चिमी और पूर्वी दोनों शक्तियों के लिए एक रणनीतिक सहयोगी में परिवर्तित कर दिया है। अमेरिका, रूस और चीन सभी भारत की वैश्विक आर्थिक स्थिरता और भू-राजनीतिक संतुलन में भूमिका को स्वीकार करते हैं। एक मजबूत और बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ, भारत का प्रभाव व्यापार से आगे बढ़कर जलवायु परिवर्तन, अंतरिक्ष अन्वेषण और वैश्विक सुरक्षा जैसे क्षेत्रों तक फैल रहा है।
भारत-अमेरिका संबंधों की प्रगति दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिए लाभकारी है, क्योंकि इससे बाजार की पहुँच बढ़ती है, रोजगार के अवसर सृजित होते हैं और तकनीकी तथा रक्षा सहयोग को बढ़ावा मिलता है। 2030 तक 500 बिलियन डॉलर के व्यापार लक्ष्य को प्राप्त करना मात्र एक आंकड़ा नहीं है—यह एक विकसित हो रही साझेदारी का प्रतीक है, जो वैश्विक व्यापार की दिशा को बदलने की क्षमता रखती है।
भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य दोनों देशों के बढ़ते आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को दर्शाता है। नरेंद्र मोदी का नेतृत्व इस साझेदारी को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण रहा है, जिससे भारत को एक प्रमुख वैश्विक खिलाड़ी के रूप में स्थापित करने में मदद मिली है। रूस, चीन और पाकिस्तान के साथ संबंधों को संतुलित करने की चुनौती के बावजूद, भारत की आर्थिक और भू-राजनीतिक स्थिति लगातार मजबूत हो रही है। व्यापार, प्रौद्योगिकी सहयोग और रणनीतिक समन्वय के साथ, भारत और अमेरिका अपने संबंधों को और गहरा करने के लिए तैयार हैं, जिससे दोनों देशों में आर्थिक विकास और स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा। आने वाला दशक इस दृष्टि को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा और यह सुनिश्चित करेगा कि दोनों देश एक विस्तारित और विविधीकृत आर्थिक साझेदारी का लाभ उठा सकें।