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सुख-दुख को एक समान  स्वीकार करे मानव - डॉ. उमर अली शाह

सुख-दुख को एक समान  स्वीकार करे मानव – डॉ. उमर अली शाह

पिठापुरम। श्री विश्व विज्ञान विद्या आध्यात्मिक पीठ के नवम पीठाधिपति डॉ. उमर अली शाह ने कहा कि मनुष्य को  सुख-दुखों को एक समान  स्वीकार करना चाहिए और ऐसा करने पर ही वह बुद्धिमान व्यक्ति बन सकेगा।

श्री विश्व विज्ञान विद्या आध्यात्मिक पीठम की 97वीं वार्षिक ज्ञान महासभा के दूसरे दिन सोमवार को डॉ. उमर अली शाह ने पिठापुरम में काकीनाडा मुख्य मार्ग पर स्थित नए आश्रम परिसर में श्रद्धालुओं को आशीर्वाद भाषण दिया।  उन्होंने कहा कि मनुष्य को अपने जीवन की यात्रा में आने वाली कठिनाइयों और खुशियों में संतुलन बनाना चाहिए तथा उन्हें एक  भावना के साथ स्वीकार करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि मन ही मनुष्य में अच्छाई और बुराई दोनों मौजूद होते हैं।  डॉ. उमर अली शाह ने कहा कि किसी व्यक्ति का जीवित रहना उसके मन की भावनाओं पर निर्भर करता है।  इसमें यह बात सामने आई कि अच्छाई, बुराई और गुणों की शक्ति मनुष्य को मन के माध्यम से प्रभावित करती है।  ऐसा कहा जाता है कि मनुष्य को राक्षसी जीवन को त्यागकर देवत्व की ओर बढ़ने के लिए आध्यात्मिक दर्शन को समझना होगा।  उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक दर्शन और दार्शनिक ज्ञान के माध्यम से प्राप्त दार्शनिक शक्ति मन को बेहतर मार्ग की ओर निर्देशित कर सकती है।  उन्होंने कहा कि यह तभी संभव होगा जब पिछडी जातियों का उत्थान होगा।  साथ ही पीठ द्वारा दी जाने वाली ध्यान, ज्ञान, मंत्र और साधना की तीन पद्धतियों को अपनाने से मन में उठने वाले बुरे विचारों पर नियंत्रण किया जा सकता है।  उन्होंने कहा कि सभी को उस स्तर तक पहुंचना चाहिए जहां मानवता ही धर्म हो और मानवता ही देवत्व हो।

इसके उपरांत, डॉ. उमर अली शाह ने सभा में अतिथियों की उपस्थिति में पीठम द्वारा तैयार विभिन्न पुस्तिकाओं और आध्यात्मिक पुस्तकों का अनावरण किया गया।

इस अवसर पर  बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित निष्काम फाउंडेशन की प्रशासक सुश्री अरुणा ने त्याग विषय से उपस्थित लोगों को अवगत किया।  उन्होंने कहा कि वैराग्य का अर्थ शाश्वत और अनित्य की समझ विकसित करना है।  उन्होंने कहा कि जब मनुष्य इच्छारहित अवस्था में पहुंचता है तो वैराग्य विकसित होता है।  यह पता चला कि एक व्यक्ति इन तीन चीजों की सीमाओं को समझकर अपनी जीवन यात्रा जारी रख सकता है: धन, संबंध और प्रसिद्धि।  उन्होंने कहा कि उनके लिए एक ऐसे पीठ में आना बहुत खुशी की बात है जो आध्यात्मिक दर्शन की शिक्षा के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति में मानवीय मूल्यों को विकसित करने के लिए निरंतर प्रयासरत है।

पीठम केंद्रीय समिति के सदस्य, एवीवी  सत्यनारायण ने श्रोताओं को खुश रहने  के गुर बताए।  कहा जाता है कि यदि व्यक्ति अपने जीवन में शाश्वत सुख प्राप्त करना चाहता है तो उसे अच्छे गुरु की शरण में जाकर ज्ञान का अभ्यास करना चाहिए।

आंध्र विश्वविद्यालय  के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष मोहम्मद इकबाल ने अपने भाषण में कहा कि अमूमन हम धर्म और आध्यात्म को एक समझ लेते हैं, जो सही नहीं है।धर्म और आध्यात्म दो आयाम हैं।

पीठम के एनआरआई  सदस्य पेरूरी विजयराम सुब्बाराव ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता और आध्यात्मिकता विषय पर बात की।उन्होंने कहा कि   वैसे तो हर नया आविष्कार मानव जाति की भलाई के लिए होता है, लेकिन कुछ लोग इसका इस्तेमाल बुराई के लिए भी करते हैं। यह कृत्रिम बुद्धिमत्ता, जो भविष्य में अप्रत्याशित चमत्कारों का स्रोत होगी, मनुष्य के लिए अच्छाई विकसित करने का एक उपकरण है।

इस अवसर पर पीठाधिपति बंधुओं एवं पंचांगकर्ता बनाला दुर्गा प्रसादाचार्युल ने उमर अली शाह को गजमाला पहनाकर सम्मानित किया ।भवानी पीठाधिपति शिवराम कृष्ण, डॉ. डी. पद्मावती, उमर अलीशा साहित्य समिति सदस्य टी.  साई वेंकन्ना बाबू, ए. राधाकृष्ण, जी.  रमण, मदर इंडिया इंटरनेशनल के अध्यक्ष पिल्ली तिरुपति राव, कॉर्पोरेट सॉफ्ट स्किल्स प्रशिक्षक कासुबाबू, कोंडेपुडी शंकर राव, येग्गिना नागबाबू और अन्य लोगों ने  अपने संबोधनों  में पीठाधिपति की  सराहना की।

दर्शनशास्त्र एवं बाल विकास की छात्रा सन्निबोयिना तेजस्विनी ने महामंत्र के महत्व पर अपने भाषण से श्रोताओं को प्रभावित किया।  बैठक में आयोजित संगीत कार्यक्रम में उमा मुकुंदा मंडली द्वारा गाए गए कीर्तन ने उपस्थित लोगों को मन्त्रमुग्ध  किया। बैठक में भाग लेने के लिए देश-विदेश से आए सदस्यों को आश्रम में निःशुल्क भोजन और बस सुविधा प्रदान की गई तथा बुजुर्गों और विकलांगों को व्हीलचेयर की सुविधा प्रदान की गई।  इस अवसर पर 216 नये लोगों ने  महामंत्र प्राप्त किया।

इस कार्यक्रम में पीठम संयोजक पेरूरी सुरीबाबू, पीठम मीडिया संयोजक अकुला रवि तेजा, केंद्रीय समिति सदस्य पिंगली आनंद कुमार, एनटीवी प्रसाद वर्मा, स्वर्णलता और अन्य ने भाग लिया।

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