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संघ प्रमुख भागवत ने किया ‘अथातो बिंब जिज्ञासा’ पुस्तक का विमोचन

मुंबई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने शनिवार को पुणे में मंदिर वास्तु रचना एवं मूर्ति शास्त्र के शोधकर्ता डॉ. गो.बं. देगलूरकर की पुस्तक ‘अथातो बिंब जिज्ञासा’ का विमोचन किया।

डॉ. भागवत ने पुणे के बाल शिक्षण संस्था के सभागार में आयोजित कार्यक्रम में कहा कि वर्तमान में विश्व विभिन्न मार्गों पर लड़खड़ा रहा है, रुका हुआ है। उसे अपनी परंपराओं से प्राप्त ज्ञान की आवश्यकता है। यह दृष्टि देने का कार्य डॉ. देगलूरकर के ग्रंथ जरिए हुआ है। ’अथातो बिंब जिज्ञासा’ विवेक जगाने वाला ग्रंथ है।

मंच पर डॉ. देगलूरकर, डॉ. आशुतोष बापट और स्नेहल प्रकाशन के निदेशक रवींद्र घाटपांडे भी मौजूद रहे। अथातो बिंब जिज्ञासा पुस्तक मराठी में है। इसमें महाराष्ट्र की अद्वितीय मूर्तियों की जानकारी है। मूल पुस्तक डॉ. देगलूरकर ने अंग्रेजी में लिखी है, जिसका डॉ. आशुतोष बापट ने मराठी में अनुवाद किया है।

संघ प्रमुख भागवत ने डॉ. देगलूरकर को आधुनिक युग में ऋषि परंपरा का वाहक बताते हुए कहा कि हमारे यहां जो मूर्ति पूजा है वह आकार के माध्यम से निराकार का संधान करनेवाली है। हर मूर्ति बनाने के पीछे विज्ञान है। मूर्ति भावयुक्त होती है। वह केवल बुद्धि का विलास नहीं है। उसके पीछे अनुभूति है लेकिन उसके लिए दृष्टि आवश्यक है, क्योंकि दृष्टि के अनुसार दृश्य दिखता है। इसका अनुभव हम सब कर रहे हैं। दृष्टि पैदा करने के लिए आस्था चाहिए। वह विवेचक होनी चाहिए। भौतिकवादी नजर की दृष्टि नहीं होती इसलिए दृष्टि परिश्रम और अध्ययन से प्राप्त करनी पड़ती है।

उन्होंने कहा कि डॉ. देगलूरकर का ग्रंथ राष्ट्रजीवन की ओर तथा ज्ञान की परम्परा की ओर देखने के लिए सकारात्मक दृष्टि देने वाला और विवेक जगाने वाला ग्रंथ है। ज्ञान और कर्म के दो पंख भक्तिमार्ग की ओर ले जाने के लिए उपयुक्त साबित होंगे। डॉ. देगलूरकर ने फोटो के माध्यम से मूर्ति विज्ञान का महत्व रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि मूर्तियों के वैज्ञानिक अध्ययन और आकलन के बिना हिंदू धर्म को पूरी तरह से समझा नहीं जा सकता। इसलिए मूर्तियों को समझिए ताकि हिंदू धर्म का रहस्य समझा जा सके।

इस अवसर पर डॉ. आशुतोष बापट ने कहा कि डॉ. देगलूरकर मूर्ति विज्ञान के चलते-फिरते ज्ञानकोश हैं। उनके सानिध्य और मार्गदर्शन में अपने ज्ञान के क्षितिज का विस्तार का अनुभव किया है। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर गुरुशिष्यामृत योग का अनुभव किया है, यह कहते हुए उन्होंने अपने गुरु के प्रति अपनी भावनाएं व्यक्त कीं।

स्नेहल प्रकाशन के निदेशक घाटपांडे ने कहा कि प्रबोधन का आंदोलन, राष्ट्र उत्थान और धरोहर, ये पुस्तक इन विषयों को समर्पित है। इस ग्रंथ के निर्माण में योगदान देने वाले मोहन थत्ते, रवींद्र देव, शेफाली वैद्य, डॅा. अंबरीष खरे, अविनाश चाफेकर, पराग पुरंदरे, विनिता देशपांडे आदि को इस अवसर पर डॉ. भागवत के हाथों सम्मानित किया गया।
साभार – हिस

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