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ऐ जिंदगी अब तू दिल्ली से दूर चल

  •  मौत की डर ने नदी तट पर बसाया रैन बसेरा

  •  कोरोना से सूरत-ए-हाल बिगड़ने पर यमुना का तट बना सहारा

  •  पुल के नीचे सोये दिहाड़ी मजदूर

हेमन्त कुमार तिवारी की विशेष रिपोर्ट
कोरोना वायरस को लेकर हाल-ए-हालात इस कदर होंगे किसी ने सोचा न था. कोरोना से जिंदगी ऐसी बेहाल हो जायेगी, यह कभी जेहन में नहीं आया. वयान-ए-वाकया कश्मीरी गेट का है, जहां मौत के डर ने लोगों को यमुना के तट तक पहुंचा दिया है. इनके मन में यही तमन्ना है कि ऐ जिंदगी अब तू दिल्ली से दूर चल.
कभी आपने सुना था कि दिल्ली दूर है. अक्सर यह बातें रोजी-रोटी की तलाश में दिल्ली जाने वाले लोग ही कहते थे, जिसके हालात देखने से लग रहा है कि अब यही दिल्ली उनको काटने को दौड़ रही है. दिल्ली में दिहाड़ी मजदूरी करने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है, जो इस समय संकट की दौर से गुजर रहे हैं. पूरी दुनिया में कहर बरपा रहे कोरोना वायरस का प्रकोप यहां भी देखने को मिला है. कोरोना का भय, रोटी की आस, आंखों में चमकती घर जाने की उम्मीदें इन मजूदरों के चेहरे पर और आंखों में दिख रही है. हालात बिगड़ते ही जा रहे हैं. बतौर आंकड़े कोरोना पर तत्काल राहत पाने की उम्मीदें काफी कम दिख रही हैं. पीड़ितों की संख्या बढ़ती ही जा रही है.


इस आफत के दौर में सहानुभूति दिखाने वालों की कमी नहीं है, लेकिन दो बातें अपनी जगह कायम है. पहली यह कि कमाई शून्य हो सकती है, लेकिन खर्च कभी शून्य नहीं होगा और दूसरी यह कि पैसे का काम सिर्फ पैसे से ही हो सकता है. दिल्ली में इन मजदूरों को भले ही दो वक्त की रोटी मिल रही हो, लेकिन इनकी कमाई से कई अन्यों को भी दो वक्त की रोटी मिलती है, उनका क्या ? इसका जवाब भले ही हो, लेकिन विश्वास एक दिन में कायम नहीं हो सकता है, क्योंकि अविश्वास की जो परंपरा चली आ रही है. बड़े-बड़े वायदे अक्सर पूरे नहीं हुए. न तो गरीबी मिटी और न ही गरीबी मिटाने वाले संकल्प मिटे. संकल्प भी अपनी जगह कायम है और गरीबी का सूरत-ए-हाल ये तस्वीरें हैं, जिसमें सैकड़ों मज़दूर इस समय दिल्ली के कश्मीरी गेट इलाके के यमुना पुश्ते पर पहुंच चुके हैं. दोपहर के समय से ही वहां डेरा जमाए मज़दूर तबके के लोग शायद घर जाने की आस में हैं. उन्ही में से एक अखबार में भी नज़र गड़ाए है, शायद कोई रहम-ए-खबर मिल जाये.

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