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संघ ने भारत की संस्कृति-परम्परा बचाने और बढ़ाने का अतुलनीय काम किया- शंकर महादेवन

  • शंकर महादेवन का संदेश-मैं रहूं या न रहूं, भारत ये रहना चाहिए

  • वर्तमान दौर में विश्व गगन पर बढ़ रहा है भारत का सम्मान

नागपुर। सुप्रसिद्ध संगीतकार और गायक पद्मश्री शंकर महादेवन का कहना है कि वर्तमान दौर में विश्व गगन पर भारत का सम्मान बढ़ रहा है। उन्होंने हाल ही में अमेरिका और यूरोपीय देशों का दौरा करने का अनुभव साझा करते हुए कहा कि वे भारत का नागरिक होने का गर्व महसूस कर रहे थे। वैश्विक जगत में एक व्यापक परिवर्तन देखने को मिला है। हमारे इस अखंड भारत की संस्कृति और परम्परा को बचाने का जो काम संघ ने किया है, वह अतुलनीय है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 98वें स्थापना दिवस पर आयोजित समारोह के मुख्य अतिथि के तौर पर नागपुर के रेशिम बाग मैदान से बोलते हुए शंकर महादेवन ने कहा कि उनके लिए आज का दिन जीवन का सबसे आनंदित करने वाला और अविस्मरणीय दिवस है। संघ के स्वयंसेवकों के बारे में उन्होंने कहा कि जैसे किसी भी गीत के पीछे सरगम यानि सा रे ग म प होता है, ऐसे ही इस भारत देश और उसकी संस्कृति और परम्परा के संरक्षण के पीछे स्वयंसेवक दिखाई देता है। जैसे गीत गाते समय सरगम दिखाई या सुनाई नहीं पड़ता, पर होता है। वैसे ही भारत और भारतीयता को संरक्षित करने के हर कार्य के पीछे संघ का स्वयंसेवक है, भले वह दिखाई न देता हो। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस देश के इतिहास, संस्कृति और परम्परा को बचाने और बढ़ाने के लिए जो योगदान दिया है, वैसा योगदान और कोई नहीं दे सका है।

शंकर महादेवन ने कहा कि बतौर संगीतकार और गायक उनका यह हमेशा से प्रयास रहता है कि वे गीत संगीत के माध्यम से युवाओं के बीच में देशभक्ति-भारत भक्ति का भाव पैदा कर सकें, उन्हें उत्साहित कर सकें। युवाओं के मन में भारत की भक्ति और उसकी संस्कृति और परम्पराओं से जोड़ने के लिए वे गीत-संगीत के माध्यम से योगदान देने का प्रयास करते हैं।

अपने संबोधन के अंत में उन्होंने प्रसून जोशी रचित एक गीत सुनाया- देश से है प्यार तो, हर पल ये कहना चाहिए.. मैं रहूं या न रहूं, भारत ये रहना चाहिए।

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