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हमारे वैज्ञानिकों का ’हार के आगे जीत’ की संकल्प को सिद्ध करता है चंद्रमा पर हुई सफल लैंडिंग
लेखक-विनय श्रीवास्तव (स्वतंत्र पत्रकार)
हर घर तिरंगा। हर मन तिरंगा। धरती से लेकर चंद्रमा तक तिरंगा। तिरंगा मेरी आन, तिरंगा मेरी शान और तिरंगा मेरी जान। स्वतंत्रता दिवस पर हर घर तिरंगा लहरा ही रहा था कि 23 अगस्त 2023 को शाम 6.04 बजे वह ऐतिहासिक पल भी आ गया जब हमारा तिरंगा चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंच गया। चंद्रमा के इस छोर पर पहुंचते ही पूरा देश खुशियों से झूम उठा। देश ही नहीं बल्कि विदेशों में रहने वाले प्रत्येक भारतीय का मन गर्व से ऊंचा हो गया। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो रक्षा बंधन से कुछ दिन पूर्व धरती मां चंदा मामा के पास राखी बांधने चली गई हों या चंदा मामा धरती पर राखी बंधवाने आ गए हों। और हम सब चंदा मामा की मेजबानी कर रहे हों। आखिर ऐसी अनुभूति हो भी क्यों नहीं। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला हमारा देश विश्व का प्रथम देश जो बना। आखिर हमें गर्व हो क्यों ना, आखिर हमारा देश बहुत कम खर्च में वहां तक पहुंचने वाला प्रथम देश जो बना। आखिर खुशी से हमारी आंखे नम क्यों न हो, क्योंकि यहां तक पहुंचने के लिए दो असफलताएं जो मिली थी। और उस असफलता पर विकसित देशों से हमारी खिल्ली, मजाक जो उड़ाया गया था।
वास्तव में चंद्रयान 1 और चंद्रयान 2 हमारे वैज्ञानिकों और हमारे देश के लिए असफलता नहीं बल्कि वह सीख थी जिसने हमें अधिक सचेत रहने, गलतियों को सुधारने और पूर्ण विश्वास के साथ गौरवमई सफलता प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। हमारे चंद्रयान की सफलता से भारत का नाम विश्व पटल पर गौरवान्वित हुआ है। एकबार पुनः हमारे वैज्ञानिकों ने अपनी योग्यता, अपनी लगन, कभी हार नहीं मानने की जिद्द ने पूरी दुनिया को अपनी तरफ आकर्षित किया है। इतना ही नहीं, हमारे देश के छात्रों और युवाओं को विज्ञान की तरफ आकर्षित किया है। मुझे पूरा यकीन है की देश के करोड़ों छात्र चंद्रयान 3 की सफलता के बाद अपने आपको विज्ञान विषय में पहले से कहीं अधिक रुचि लेंगे तथा नई नई खोज की जिज्ञासा रखेंगे। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) को चांद पर सफलता पूर्वक पहुंचने का सफर आसान नहीं रहा। यहां तक पहुंचने में अनेकों चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। सन 1963 में भारत के पहले रॉकेट को साइकिल पर लादकर लॉन्च सेंटर तक लाया गया था। आज चंद्रयान-3 ने चांद पर कदम रख दिए। यह कहानी है भारत के स्पेस प्रोग्राम की, वैज्ञानिकों की कुशलता और दृढ़ संकल्प और इसरो की। इसरो आज भारत का गौरव है।
आपको शायद यह जानकर हैरानी हो, मगर ISRO की स्थापना काफी पहले, 1962 में हुई थी। उस समय इसे भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) कहा जाता था। महान वैज्ञानिक विक्रम साराभाई उसका नेतृत्व कर रहे थे। साराभाई के पास गिने-चुने वैज्ञानिकों की टीम थी और पैसों की तंगी। एक साल बाद भारत ने पहला रॉकेट लॉन्च किया। उसके पार्ट्स को साइकिल पर लादकर लॉन्च सेंटर तक पहुंचाया गया था। वह तस्वीर ऐतिहासिक थी। पांच दशक बाद, हम चांद, मंगल और उससे कहीं आगे तक यान भेज रहे हैं। यह इसरो की सफलता है, उसके वैज्ञानिकों की मेहनत का नतीजा है। इसरो की कहानी भारत की कहानी है, अंतरिक्ष में उसकी महत्वाकांक्षाओं के विस्तार की कहानी है। इसरो का इतिहास भारत की अनंत जिज्ञासा का इतिहास है। हमें अभी बहुत दूर तक जाना है। अब सूर्य तक पहुंचने की तैयारी है। आशा ही नहीं वल्कि पूर्ण विश्वास है कि हमारे वैज्ञानिकों की तपस्या यहां भी सफलता की परचम लहराएगी। इसरो के सभी वैज्ञानिकों को दिल से नमन है। उन्हें बारंबार प्रणाम है।