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स्वच्छता के क्षेत्र में क्रान्ति लाने वाले बिन्देश्वर पाठक का निधन

  • राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गहरा शोक जताया

नई दिल्ली। देश में स्वच्छता के क्षेत्र में क्रान्ति लाने वाले सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिन्देश्वर पाठक का निधन हो गया है। बताया जाता है कि बिन्देश्वर पाठक का मंगलवार की ह्रदय गति रुकने से वह हम सभी के बीच नहीं रहे। 80 वर्ष के पाठक को आज अचानक बीमार पड़ने पर एम्स में भर्ती कराया गया था, लेकिन वे जिंदगी से जंग हार गए। उन्हें उनके कार्यों के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। उनके निधन से शोक की लहर दौड़ गई है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर गहरा शोक जताया है। मुर्मू ने ट्विट किया है कि सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक श्री बिन्देश्वर पाठक के निधन का समाचार अत्यंत दुखदाई है। श्री पाठक ने स्वच्छता के क्षेत्र में क्रान्तिकारी पहल की थी। उन्हें पद्म-भूषण सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। उनके परिवार तथा सुलभ इंटरनेशनल के सदस्यों को मैं अपनी शोक-संवेदनाएं व्यक्त करती हूं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को डॉ. बिन्देश्वर पाठक के निधन पर शोक व्यक्त किया। अपने शोक संदेश में प्रधानमंत्री ने कहा कि उनके जाने से देश ने एक महान हस्ती को खो दिया है। वे दूरदर्शी एवं समाज उत्थान के नायक थे।

प्रधानमंत्री ने कहा कि बिन्देश्वर जी ने देश को स्वच्छ बनाने का बीड़ा उठाया था। स्वच्छ भारत अभियान को उन्होंने जबरदस्त समर्थन प्रदान किया। वार्तालाप के दौरान हमने उनके स्वच्छता के प्रति उत्साह को देखा है। उनका कार्य लोगों को हमेशा प्रेरणा देता रहेगा।

डॉ बिन्देश्वरी पाठक का जन्म ०२ अप्रैल १९४३ को हुआ था। वह विश्वविख्यात भारतीय समाजिक कार्यकर्ता एवं उद्यमी थे। उन्होंने सन १९७० मे सुलभ इन्टरनेशनल की स्थापना की। सुलभ इंटरनेशनल मुख्यतः मानव अधिकार, पर्यावरणीय स्वच्छता, ऊर्जा के गैर पारंपरिक स्रोतों और शिक्षा द्वारा सामाजिक परिवर्तन आदि क्षेत्रों में कार्य करने वाली एक अग्रणी संस्था है। पाठक का कार्य स्वच्छता और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अग्रणी माना जाता है। इनके द्वारा किए गए कार्यों की राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है और पुरस्कृत किया गया है।

भारत के बिहार प्रान्त के रामपुर में  जनमे डॉ बिन्देश्वरी पाठक सन् १९६४ में समाज शास्त्र में स्नातक की उपाधि ली। सन् १९६७ में उन्होंने बिहार गांधी जन्म शताब्दी समारोह समिति में एक प्रचारक के रूप में कार्य किया। वर्ष 1970 में बिहार सरकार के मंत्री श्री शत्रुहन शरण सिंह के सुझाव पर सुलभ शौचालय संस्थान की स्थापना की। बिहार से यह अभियान शुरू होकर बंगाल तक पहुंच गया। वर्ष 1980 आते आते सुलभ भारत ही नहीं विदेशों तक पहुंच गया। सन, 1980 में इस संस्था का नाम सुलभ इण्टरनेशनल सोशल सर्विस आर्गनाइजेशन हो गया। सुलभ को लिए अन्तर्राष्ट्रीय गौरव उस समय प्राप्त हुआ जब संयुक्त राष्ट्र संघ की आर्थिक एवं सामाजिक परिषद द्वारा सुलभ इण्टरनेशनल को विशेष सलाहकार का दर्जा प्रदान किया गया।

सन् १९८० में उन्होने स्नातकोत्तर तथा सन् १९८५ में पटना विश्वविद्यालय से पीएच डी की उपाधि अर्जित की। उनके शोध-प्रबन्ध का विषय था – बिहार में कम लागत की सफाई-प्रणाली के माध्यम से सफाईकर्मियों की मुक्ति (लिबरेशन ऑफ स्कैवेन्जर्स थ्रू लो कास्ट सेनिटेशन इन बिहार)।

एक पारंपरिक ब्राह्मण परिवार में जन्मे और बिहार में पले बढ़े डॉ पाठक ने अपने पीएच.डी. का अध्ययन क्षेत्र “भंगी मुक्ति और स्वच्छता के लिए सर्व सुलभ संसाधन” जैसे विषय को चुना और इस दिशा में गहन शोध भी किया। 1968 में श्री पाठक भंगी मुक्ति कार्यक्रम से जुड़े रहे और उन्होंने तब इस सामाजिक बुराई और इससे जुड़ी हुई पीड़ा का अनुभव किया। श्री पाठक के दृढ निश्चय ने उन्हें सुलभ इंटरनेशनल जैसी संस्था की स्थापना की प्रेरणा दी और उन्होंने 1970 में भारत के इतिहास में एक अनोखे आंदोलन का शुभारंभ किया।

श्री पाठक को भारत सरकार द्वारा १९९१ में पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सन् 2003 में श्री पाठक का नाम विश्व के 500 उत्कृष्ट सामाजिक कार्य करने वाले व्यक्तियों की सूची में प्रकाशित किया गया। श्री पाठक को एनर्जी ग्लोब पुरस्कार भी मिला।श्री पाठक को इंदिरा गांधी पुरस्कार, स्टाकहोम वाटर पुरस्कार इत्यादि सहित अनेक पुरस्कारों द्वारा सम्मानित किया गया है।

उन्होंने पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने के लिये प्रियदर्शिनी पुरस्कार एवं सर्वोत्तम कार्यप्रणाली (बेस्ट प्रक्टिसेस) के लिये दुबई अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त किया है। इसके अलावा सन् २००९ में अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा संगठन (आईआरईओ) का अक्षय उर्जा पुरस्कार भी प्राप्त किया।

 

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