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औपनिवेशिक और विदेशी ताकतों को हर बार भारत के बहादुर देशभक्तों ने खदेड़ा: आशुतोष भटनागर
आगरा। श्री राम जन्मभूमि न्यास के महामंत्री चंपत राय ने कहा कि स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ का यह अमृत महोत्सव तभी सार्थक होगा जब हम संसार के हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनेंगे।
चंपत राय ने क्रांति तीर्थ श्रृंखला के समापन पर गुरुवार को सूरसदन में आयोजित कार्यक्रम को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित किया। इसका आयोजन केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के निर्देशन में सेंटर फॉर एडवांस्ड रिसर्च ऑन डेवलपमेंट एंड चेंज (सीएआरडीसी) एवं संस्कार भारती द्वारा किया गया था।
चंपत राय ने कहा कि आठवीं शताब्दी से आजादी का संघर्ष निरंतर चल रहा है। युद्ध के प्रकार निरंतर बदल रहे हैं। देश को पराधीन करने की कोशिश जारी है। अमेरिका, चीन और रूस क्यों चाहेंगे कि हम विकसित देश बनें। ये आज की तरुणाई को सोचना है कि अगर हम आर्थिक रूप से पराधीन हुए तो राजनीतिक रूप से भी पराधीन हो जाएंगे।
इससे पूर्व जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र के निर्देशक आशुतोष भटनागर ने कहा कि 1000 वर्ष के संघर्ष में एक भी दिन ऐसा नहीं, जब भारत पूरी तरह गुलाम रहा हो। स्वाधीनता के संघर्ष में युवाओं, महिलाओं, लोक कलाकारों, साहित्यकारों, पत्रकारों समेत सबने अपनी अपनी भूमिका अदा की। 1857 में मेरठ और दिल्ली ही नहीं, आगरा भी लड़ा।
उन्होंने कहा कि हमें स्वाधीनता तो मिल गई लेकिन अभी स्वतंत्रता बाकी है। तंत्र आज भी हमारा नहीं बना है। आज भी हम उसी तरह पुलिस से डरते हैं, जैसे अंग्रेजों से डरते थे। वर्ष 2047 में आजादी की शताब्दी मनाते हुए हम सब पूर्ण स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनें। हम उन बलिदानियों के सपनों को लेकर जिएं और उन्हें साकार करें।
उन्होंने कहा कि भारत जीतने या भारत पर कब्जा करने का सपना लेकर आने वाले पुर्तगाली हों, फ्रेंच हों, डच हों या अंग्रेज, सभी औपनिवेशिक और विदेशी ताकतों को हर बार भारत के बहादुर देशभक्तों और क्रांतिकारियों ने बुरी तरह खदेड़ा लेकिन अंग्रेजी लेखकों ने भारतीय वीरता और साहस को सामने नहीं आने दिया बल्कि उन्होंने 1857 के पूरे आंदोलन को भी मुट्ठी भर लोगों की कल्पना बताया और इसको एक सैनिक विद्रोह तक सीमित करने की बात कही। इसके लिए उन्होंने फर्जी दस्तावेज बनाए। दुर्भाग्य यह हुआ कि स्वतंत्रता के बाद जिन लोगों ने आजादी का इतिहास लिखा, उन्होंने भी उन्हीं अधूरे और अप्रामाणिक दस्तावेजों को सत्य मान लिया। परिणाम यह हुआ कि औपनिवेशिक ताकतों से भारत की आजादी के सही तथ्य कभी सामने नहीं आ सके। आजादी के सैकड़ों क्रांतिकारी गुमनाम ही रह गए।
भटनागर ने कहा कि क्रांति तीर्थ श्रृंखला के माध्यम से स्वाधीनता के इन्हीं गुमनाम नायकों को प्रकाश में लाने और इनकी गौरव गाथा नई पीढ़ी तक पहुंचाने का महती कार्य किया गया है।
क्रांति तीर्थ श्रृंखला के मंडल समन्वयक राज बहादुर सिंह राज ने समारोह की भूमिका रखते हुए बताया कि विगत 15 अप्रैल से 27 जून तक आगरा जनपद के बाह, किरावली, जगनेर, फतेहपुर सीकरी और एत्मादपुर क्षेत्र के दो दर्जन से अधिक गांवों में लगातार प्रवास, संपर्क और संवाद करके 42 गुमनाम क्रांतिकारियों को खोजा गया। इनमें से भी केवल 36 क्रांतिकारियों के ही परिवारी जन मिल सके, जिनका आज सम्मान किया गया।
पोस्ट – इण्डो एशियन टाइम्स
सभार – हिस