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1857 की क्रांति के नायक धन सिंह कोतवाल के वंशज का हुआ सम्मान
मेरठ/नई दिल्ली, जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र के निदेशक आशुतोष ने कहा कि मेरठ के क्रांतिकारियों ने पूरे देश को ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध सशक्त प्रतिरोध के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्ति का मार्ग दिखाया। उन्होंने कहा कि इतिहासकारों को 1857 की क्रांति से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति तक महत्वपूर्ण बलिदानी परंपरा से जुड़ी घटनाओं को नई पीढ़ी तक पहुंचाना होगा।
अध्ययन केंद्र के निदेशक आशुतोष बुधवार को मेरठ कैंट स्थित औघड़नाथ मंदिर सभागार में ‘क्रांतितीर्थ’ श्रृंखला के अंतर्गत एक समारोह को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे। समारोह में सैकड़ों लोगों ने वीर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की और उनकी वीरता को याद किया। समारोह में 1857 की क्रांति में हिस्सा लेने वाले वीर धन सिंह कोतवाल के पांचवें वंशज हंसराज को सम्मानित किया गया। समारोह का आयोजन क्रांति तीर्थ अमृत महोत्सव आयोजन समिति मेरठ प्रांत के द्वारा किया गया। ‘क्रांतितीर्थ’ श्रृंखला का आयोजन देश के विभिन्न हिस्सों में आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के निर्देशन में सेंटर फॉर एडवांस्ड रिसर्च ऑन डेवलपमेंट एंड चेंज (सीएआरडीसी) द्वारा संस्कार भारती के सहयोग से किया जा रहा है।
इस अवसर पर आशुतोष ने कहा कि भारत में क्रांति का ताना-बाना तो उसी दिन से शुरू हो गया था, जिस दिन वास्कोडिगामा ने 15वीं शताब्दी में भारत में पहली बार कदम रखा और सशक्त प्रतिरोध का इतिहास साक्षी बना, जिसकी परिणति 1857 की क्रांति और उससे पूर्व हुए विभिन्न विद्रोह के रूप में सामने आती रहीI अंग्रेजों सहित अन्य विदेशी शक्तियों ने भारत को गुलाम बनाने के लिए खोज की, लेकिन 1757 में प्लासी की लड़ाई से लेकर 1947 तक अर्थात 190 वर्ष के संघर्ष में सिर्फ आधा भारत ही अंग्रेजों के नियंत्रण में हो सका।
उन्होंने कहा कि क्रांतिधरा मेरठ को इसका श्रेय जाता है, यहां से क्रांतिकारियों ने पूरे देश को ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध सशक्त प्रतिरोध के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्ति का मार्ग दिखाया। सैनिकों से पहले संपूर्ण समाज में हमें क्रांति के प्रति जागृति दिखाई पड़ती है। चाहे वह काश्तकार रहा हो अथवा दस्तकार, यहां तक कि नगरवधुओं ने भी क्रांति में अपनी सहभागिता की I मेरठ की क्रांति ने पूरे विश्व के समक्ष एक नई अवधारणा रखी कि औपनिवेशिक शासन ज्यादा दिन तक नहीं टिक सकता I मेरठ से फूटी चिंगारी ने पूरे देश को अपने आंचल में समेटा, जिसमें सभी समाज के लोगों की सहभागिता रही।
उन्होंने वीर सावरकर, चापेकर बंधुओं के बलिदान और क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़े वैज्ञानिकों और राजनेताओं की चर्चा करते हुए कहा कि इतिहासकारों को 1857 की क्रांति से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति तक महत्वपूर्ण बलिदानी परंपरा से जुड़ी घटनाओं को नई पीढ़ी तक पहुंचाना होगा। लेकिन इसमें यह भी ध्यान देना होगा कि स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ बलिदान देने वाले उन नायकों को सामने लाया जाया, जिन्हे अब तक इतिहास में स्थान नहीं मिला I अल्पज्ञात या भुला दिए गए वीरों के योगदान को आम जनता के सामने लाना है, जिससे देश की वर्तमान और आगामी पीढ़ी उनकी गाथाओं से परिचित हो सके I
उल्लेखनीय है कि भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में उत्तर प्रदेश स्थित मेरठ का अपना विशेष योगदान रहा है। 10 मई 1857 के दिन मेरठ से ही ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध क्रांति की शुरुआत हुई थी, जिसका परिणाम पूरे देश में दिखाई दिया। 1857 में हुए स्वतंत्रता संग्राम में मेरठ के क्रांति नायक धन सिंह कोतवाल भी शामिल थे, जिन्होंने अपनी वीरता से ब्रिटिश सेना को बड़ी क्षति पहुंचाई थीI धन सिंह कोतवाल के वंशज हंसराज ने आज क्रांति नायक धन सिंह की वीरता और उनकी संघष गाथा को सामने रखाI
साभार -हिस