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अभाविप के नवनिर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष से बातचीत
जयपुर, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) के नवनिर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं शिक्षाविद् डॉ. राजशरण शाही का मानना है कि देश की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति युवाओं को स्वावलंबी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। जम्मू-कश्मीर के सवाल पर उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 खत्म हो चुका है, लेकिन वहां का समूचा दृश्य तभी बदलेगा जब सामाजिक जागरण होगा। डॉ. शाही से ऐसे ही कई ज्वलंत मुद्दों पर हिन्दुस्थान समाचार ने बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश-
सवाल : भारतीय शिक्षा को वैश्विक पटल पर कैसे ले जाएंगे। कोई खाका तैयार है?
जवाब : (मुस्कुराते हुए) हाँ, कोई भी बात एबीवीपी यूं ही नहीं कहती है। योजना के बगैर न कोई संकल्प लिया जाता है और न ही कोई प्रस्ताव आते हैं। प्रत्येक राष्ट्र का अपना मूल चरित्र है। वह अपने मूल चरित्र के साथ ही विश्वपटल पर स्थापित हो सकता है। विश्व का मार्गदर्शक बन सकता है। भारत की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति इसे प्रतिपादित कर रही है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारत के मूल्यों और परम्पराओं पर आधारित शिक्षा देने का प्रावाधान पहली बार हुआ है। भारत की शिक्षा को देश की भाषा से जोड़ने का प्रयास भी हुआ है। हालांकि, भारत की शिक्षा को अब तक पश्चिम के चश्मे से देखा जा रहा था। अब हमने अपने मूल स्वभाव की ओर चलना शुरू किया है। मार्ग सहज और सरल है। दिशा भी स्पष्ट है। भारत अपने रास्ते पर चलते हुए ही भारत बनेगा; अमेरिका अथवा ब्रिटेन की तरह नहीं।
सवाल : तो क्या यह माना जाय कि भारत कभी महाशक्ति नहीं बनेगा?
जवाब : (आत्मविश्वास से) जी, हमें भारत को महाशक्ति नहीं, बल्कि विश्वगुरु बनाना है। महाशक्ति, शब्द को संकुचित अर्थों में लिया जा सकता है। इसकी वजह भी बताता हूं। अहंकार में शक्ति का दुरुपयोग भी होने की गुंजाइश होती है, लेकिन गुरुता से समग्रता है। समावेशिता है। इसलिए हम ”सर्वे भवन्तु सुखिन:” के भाव से आगे बढ़ने में विश्वास रखते हैं। यह एक गुरु ही कर सकता है।
सवाल : शिक्षा को आप किस नजरिये से देखते हैं? क्या यह ‘एजुकेशन फॉर नेशनल डवलपमेंट’ है?
जवाब : आप जिसकी बात कर रहे हैं वह मैं समझ रहा हूं। वर्ष 1966 में आई कोठारी कमीशन की रिपोर्ट का टाइटल ‘एजुकेशन फॉर नेशनल डवलपमेंट’ था। इसकी बहुत चर्चा थी। वर्ष 1986 में एक पत्रकार ने कोठारी से पूछा कि आज उन्हें रिपोर्ट देनी पड़े तो वह क्या कहेंगे? उन्होंने बड़ी सहजता से इसका जवाब दिया कि टाइटल बदल देंगे। अब इसे ‘एजुकेशन फॉर कैरेक्टर डवलपमेंट’ कहेंगे। उनकी इस छोटी सी पंक्ति का सार समझिये। भारत की शिक्षा प्राचीनकाल से ही अंधकारमय से आनंदमय स्थिति प्रदान करने वाली रही है। भारतीय शिक्षा या ज्ञान के इस स्वरूप को बिगाड़ कर भारत को कमजोर करने का षड्यंत्र हुआ। निःसंदेह इस शिक्षा से भारत में मानसिक विकास हुआ, लेकिन चरित्र निर्माण की प्रक्रिया कमजोर हुई। हमें मानसिक, चारित्रिक विकास करने के साथ स्वावलम्बी युवा तैयार करने हैं। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यह मार्ग खुल रहा है।
सवाल : क्या नई शिक्षा नीति का व्यवसायीकरण नहीं हो रहा है? यदि हो रहा है तो कैसे रुकेगा, कोई योजना है?
जवाब : आपकी आशंका निर्मूल नहीं है। अभाविप हमेशा से शिक्षा के व्यवसायीकरण के खिलाफ है। इस सम्बंध में हमने अधिवेशन में प्रस्ताव भी पारित किया है। हमने नई शिक्षा नीति को लागू करवाने के लिए सरकारों से बजट में राशि का प्रावधान करने की मांग की है।
सवाल : सरकार ने पीएफआई जैसे संगठन पर प्रतिबंध लगाया है। इसे कितना कारगर मानते हैं?
जवाब : किसी भी कट्टरपंथी संगठन को प्रतिबंधित करने का कार्य संवैधानिक एवं राजकीय नियंत्रण में है। प्रतिबंध कोई स्थानीय निदान नहीं है। सामाजिक स्तर पर इसका प्रतिकार होना चाहिए। यह ज्यादा प्रभावी होगा। सामाजिक संगठन होने के नाते अभाविप इसके लिए समाज जागरण करेगा। कश्मीर में भी केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35(ए) को हटाया है, लेकिन यहां भी अभी सामाजिक जागरुकता की जरूरत है। जब सामाजिक जागरण होगा, तब ही दृश्य कुछ अलग होगा।
साभार-हिस