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नई शिक्षा नीति भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने वाली : अकील अहमद

कोलकाता, केंद्र की मोदी सरकार नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लाई है जो देशभर की क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने वाली है। इसके जरिए छात्र-छात्राएं मातृ भाषाओं में प्राइमरी से लेकर उच्चतम स्तर तक तालीम हासिल कर सकेंगे। यह कहना है केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाले राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद के निदेशक प्रो. शेख अकील अहमद का। कोलकाता में आयोजित हुए तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय साहित्य महोत्सव में विशेष अतिथि के तौर पर शामिल होने पहुंचे प्रो. अकील अहमद से कार्यक्रम के इ़तर हिन्दुस्थान समाचार ने बातचीत की। प्रो. अकील अहमद ने भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने और वैश्विक स्तर पर इसके शैक्षणिक महत्व को स्थापित करने के लिए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बारे में बात की। पेश है बातचीत के प्रमुख अंश।

प्रश्न : वैश्विक शिक्षा के मद्देनजर भारतीय भाषाओं में शिक्षा दीक्षा कम होती जा रही है। इस पर क्या कहेंगे?

उत्तर : मोदी सरकार की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के प्रावधान हैं। हमारे यहां लोगों को यह लगने लगा है कि अगर हम वैश्विक स्तर पर कोई शिक्षा हासिल करना चाहते हैं तो बगैर अंग्रेजी के ऐसा नहीं कर सकते। जैसे विज्ञान है, तकनीक है, इंजीनियरिंग या डॉक्टरी की पढ़ाई है, उसके लिए अंग्रेजी जानना जरूरी माना जाता है। नौकरी के लिए भी अंग्रेजी की जरूरत है। इस तरह की एक सोच पूरे हिंदुस्तान के अंदर घर कर गई है, लेकिन जो नई शिक्षा नीति बनी है उसमें इस बात का ख्याल रखा गया है कि भारतीय भाषाओं को ना केवल बढ़ावा दिया जाए बल्कि उन्हें बड़े पैमाने पर विकसित भी किया जाए। इसमें इस बात के प्रावधान हैं कि प्राइमरी से लेकर आठवीं तक बच्चे अपनी मातृभाषा में पढ़ाई कर सकते हैं। उसके बाद भी चाहे तो स्नातकोत्तर तक उसी भाषा में पठन-पाठन कर सकते हैं। कई राज्यों में इंजीनियरिंग और मेडिकल की किताबें भी हिंदी में प्रकाशित हो गई हैं। हाल ही में आपने मध्यप्रदेश में ऐसा देखा है। यह एक अच्छी पहल है। इससे वैश्विक स्तर पर भारतीय भाषाओं को एक पहचान मिलेगी।
प्रश्न : उर्दू आजादी से पहले इस देश की सर्व स्वीकार्य भाषा रही है। इस बारे में क्या कहेंगे?
उत्तर : मैं, उर्दू भाषा विकास परिषद का निर्देशक हूं इसलिए मैं यह कहना चाहता हूं कि उर्दू भाषा इंसान के तमाम भाषाओं में विशेष महत्व रखती है। क्योंकि सिर्फ हिन्दुस्तान की ही नहीं बल्कि दुनिया में कई ऐसी भाषाएं हैं जिनमें उर्दू का प्रयोग होता है। हिन्दुस्तान में जितने भी धर्म हैं उन धर्मों का प्रचार-प्रसार शुरुआत में उर्दू भाषा के माध्यम से ही होता था। सिख धर्म, हिन्दू धर्म के कई ग्रंथावली उर्दू भाषा में मौजूद हैं। उर्दू के कवि चाहे वह गालीब हों या अन्य कोई उन सभी का नाम विश्वभर के कवियों में शुमार है। इनकी कविताओं को दुनियाभर की कई भाषाओं में ट्रांसलेट किया गया है। इसलिए उर्दू अब सिर्फ एक भारतीय भाषा ही नहीं है बल्कि विश्व स्तरीय भाषा के क्रम में खड़ी है। भारतवर्ष में कोई ऐसा राज्य या कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां उर्दू भाषा को पढ़ने और समझने वाले मौजूद ना हों। भाषा कोई भी हो चाहे वह उर्दू हो हिन्दी हो या विश्व की कोई भी भाषा हो सभी को बढ़ावा देना चाहिए और इसके लिए साहित्य उत्सव जैसे कार्यक्रम बेहद खास होते हैं।

प्रश्न : तकनीक का हाथ पकड़कर तेजी से डिजिटल हो रही दुनिया में साहित्य उत्सव का आयोजन आज के दौर में कितना प्रासंगिक है?

उत्तर : आज यहां वर्ल्ड लैंग्वेज सेलिब्रेशन किया जा रहा है। भारत में जितनी भी भाषाएं हैं उन तमाम भाषाओं के बारे में बातचीत होगी। इसके अलावा हिन्दुस्तान से बाहर जितनी भाषाएं हैं उन भाषाओं के बारे में भी बातचीत होगी। तीन दिवसीय इस कार्यक्रम का बहुत महत्व है। यह महत्व इसलिए है क्योंकि संवाद करने के लिए हमारे भारतीय दर्शन का यह मानना है कि भाषाएं कहीं की भी हों, वे पूजनीय होती हैं। क्योंकि इन्हें इंसानों ने नहीं बल्कि स्वयं भगवान ने बनाया है। हिन्दुस्तानी दर्शन का यह भी कहना है कि दुनिया के अंदर तीन चीजें ऐसी हैं जो कि पूजनीय हैं। उसमें मातृभाषा, मां और मातृभूमि है। सबसे पहले हम मातृभूमि को नमन करेंगे, फिर हम मां को और फिर मातृभाषा को। हमें इसके महत्व को समझना चाहिए। दूसरी बात यह कि दुनिया में जितनी भी फिलासफी या ज्ञान है उसे व्यक्त करने के लिए हमें किसी ना किसी भाषा का सहारा लेना पड़ता है। जब तक हम भाषा का सहारा नहीं लेते तब तक हम अपनी बातों को दुनिया तक नहीं पहुंचा पाते हैं। हमारी रीति, हमारी संस्कृति, हमारा दर्शन हम भाषा के जरिए ही दुनिया तक पहुंचा सकते हैं। भाषाओं की बहुत ज्यादा अहमियत है। आज तकनीक के जमाने में भी साहित्य उत्सव के जरिए दुनियाभर के लोग एक जगह आते हैं और भाषाओं की विविधता के बीच वैश्विक एकरूपता को महसूस करते हैं। इसलिए साहित्य उत्सव का आयोजन बेहद प्रासंगिक है।
प्रश्न: पश्चिम बंगाल में उर्दू की स्थिति कैसी है?
उत्तर : पश्चिम बंगाल में उर्दू की स्थिति अच्छी है। उर्दू से संबंधित कोलकाता और आसनसोल में कई संस्थाएं हैं। यहां उर्दू माध्यम के कई स्कूल भी मौजूद हैं। बावजूद इसके उर्दू को जिस प्रकार से पश्चिम बंगाल में बढ़ावा मिलना चाहिए वैसा नहीं मिला है। यहां उर्दू को लेकर और अधिक काम करने की जरूरत है।
प्रश्न : क्षेत्रीय भाषाओं के स्कूल बंद हो रहे हैं जबकि अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है?
उत्तर : क्षेत्रीय भाषाओं के स्कूलों के बंद होने और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों को बढ़ावा मिलने का मुख्य कारण यह है कि हमारे यहां लोगों को ऐसा लगता है कि यदि उन्हें विश्व स्तर का ज्ञान हासिल करना है तो उसके लिए अंग्रेजी पढ़ना अनिवार्य है, लेकिन हमारी भारतीय भाषाएं दुनिया में सर्वश्रेष्ठ हैं और इनमें हासिल हुई शिक्षा वैश्विक स्तर पर खुद को स्थापित करने में मददगार बनेंगी। इसलिए सरकार क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए नई शिक्षा नीति पर जोर दे रही है।

प्रश्न : माता-पिता में अंग्रेजी को लेकर अधिक रुझान क्यों?

उत्तर : आम लोगों को भारतीय भाषाओं के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है। विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक एवं भाषा संबंधित कार्यक्रमों का आयोजन कर हम लोगों में मातृभाषा के प्रति जागरूकता फैला सकते हैं। स्कूल के बच्चों और विशेषकर उनके माता-पिता को यह समझाने की आवश्यकता है कि उनकी जो मातृभाषा है वह अति पूजनीय है। उसका आदर करने की जरूरत है और महत्व समझने की जरूरत है। दूसरी भाषाओं की चमक-दमक से दूर होने की जरूरत है। अपनी मातृभाषा के अंदर भी छात्र बहुत कुछ कर सकते हैं। मुझे लगता है कि लोग अब धीरे-धीरे अपनी मातृभाषा के प्रति जागरूक हो रहे हैं।
साभार-हिस

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