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दुर्गा महोत्सव : कोलकाता में सेक्स वर्कर्स का जीवन दर्शाने वाली बनाई गई सिलिकॉन की दुर्गा मूर्ति

कोलकाता, कोलकाता में दुर्गा पूजा के दौरान नए विषयों को पेश करने की परंपरा को आगे बढ़ाने की होड़ हर वर्ष दिखती है। अब परिचय थीम के तहत यौनकर्मियों के जीवन को दर्शाने वाले पंडालों और मूर्तियों का निर्माण किया गया है। नोआपाड़ा दादाभाई संघ पूजा समिति की ओर से बनाई गई इस दुर्गा पंडाल की प्रतिमा को देखने के लिए अभी से ही लोगों की भीड़ उमड़ने लगी है।

पश्चिम बंगाल में पूजा के दौरान कोलकाता में मूर्तिकार दुर्गा मूर्तियों को तैयार करते समय विभिन्न विषयों को प्रस्तुत करते हैं। इस साल सेक्स वर्कर्स के जीवन को दर्शाने वाला एक ऐसा पंडाल बनाया गया है, जो यह भी दिखाता है कि वे किस समाज में रहते हैं और किस तरह से लोग उन्हें देखते हैं।

पंडाल में पहली बार सिलिकॉन से बनी मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित की गई है, जो शहर में पहले कभी नहीं देखी गई। मूर्ति को मां का रूप दिया गया है, जिसके जरिए यह दिखाने की कोशिश की गई है कि सेक्स वर्कर में भी मां का रूप होता है।

कॉन्सेप्ट और थीम डिजाइनर संदीप मुखर्जी ने सेक्स वर्कर्स के काम पर अपना नजरिया व्यक्त करते हुए बताया कि लोगों के नजरिए में बदलाव लाने की जरूरत है। वेश्यावृत्ति एक पेशा है, लेकिन आम लोगों के लिए अलग है। हम कह सकते हैं कि हम किस पेशे में हैं, लेकिन क्या वे ऐसा कह सकते हैं? क्योंकि हम उन्हें एक अलग दृष्टिकोण से देखते हैं। हमें इस दृष्टिकोण को बदलना चाहिए। हमारा प्रोजेक्ट है समाज में बदलाव लाने के लिए। वे जो करते हैं, उसके कारण हम उन्हें गलत नजर से देखते हैं। हम उन्हें समाज में प्रवेश नहीं करने देते हैं। उन्होंने आगे बताया कि हमने मूर्ति में एक मां के परिवेश को जोड़ा है, जो यौनकर्मियों को दर्शाती है। हमने इसे आकर्षक और लोगों को छूने के लिए सिलिकॉन रूप दिया। यह पहली बार है कि मां दुर्गा की एक मूर्ति बनाई गई है जो सिलिकॉन की है। थीम में सेक्स वर्कर्स के जीवन को प्रदर्शित किया गया है। मैंने कई वर्षों तक इस अवधारणा को अन्य आयोजकों के सामने प्रस्तुत किया, लेकिन वे साहस नहीं दिखा सके।
आयोजक और पार्षद अंजन पॉल ने कहा कि मेरे लिए थीम का प्रतिनिधित्व करना चुनौतीपूर्ण था। बहुत सारे लोग पंडाल देखने आ रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि आने वाले दिनों में लाखों लोग यहां आएंगे। मैंने यह पंडाल बनवाया है, यह संदेश देने के लिए कि उन्हें समाज में शामिल किया जाना चाहिए। पंडाल बनाने में 30 लाख रुपये लगे हैं।
साभार-हिस

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