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विश्व हिन्दू परिषद के अट्ठावन वर्ष और सामाजिक समरसता
-विनोद बंसल
राष्ट्रीय प्रवक्ता-विहिप
हिन्दू समाज की एकता व अखंडता को तार-तार कर उसे जातिवादी, क्षेत्रवादी, भाषावादी व मत-पंथ-संप्रदाय वादी विभेदों में बाँट कर ही मुगलों ने और फिर अंग्रेजों ने भारत पर शासन किया। विपत्ति चाहे अनगिनत आईं किन्तु, यहाँ के बहुसंख्यक हिन्दू समाज में ना तो ज्ञान की ना वीरता व पौरुष की, ना धैर्य की और ना धर्म की कभी न्यूनता हुई। हाँ कभी आक्रमण सहे तो कभी उसके विरुद्ध क्षमता से भी अधिक भी प्रतिकार व वीरता का परिचय दिया। किन्तु हमारा विविध प्रकार का विखराव ही हमारा अभिशाप बना।
29 अगस्त 1964 को श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर पवई, मुम्बई स्थित पूज्य स्वामी चिनमयानन्द जी के आश्रम सांदीपनि साधनालय में बुलाई गई एक बैठक में पूज्य स्वामी चिनमयानन्द, राष्ट्रसंत तुकडो जी महाराज, सिख सम्प्रदाय से माननीय मास्टर तारा सिंह, जैन सम्प्रदाय से पूज्य सुशील मुनि, गीता प्रेस गोरखपुर से हनुमान प्रसाद पोद्दार, के एम मुंशी तथा पूज्य श्री गुरुजी सहित 40-45 अन्य महानुभाव भी उपस्थित थे। इसी दिन इन महा-पुरुषों ने विश्व हिंदू परिषद के गठन की घोषणा कर दी। इसी बैठक में हिन्दू समाज को संगठित और जागृत करने, उसके स्वत्वों, मानबिन्दुओं तथा जीवन मूल्यों की रक्षा व संवर्धन करने तथा विदेशस्थ हिंदुओं से संपर्क स्थापित कर उन्हें सांस्कृतिक रूप से सुदृढ़ बनाने व उनकी सहायता करने सम्बन्धी विश्व हिंदू परिषद के तीन मुख्य उद्देश्य भी तय कर दिए गए।
‘हिन्दू’ की परिभाषा करते हुए कहा गया कि “जो व्यक्ति भारत में विकसित हुए जीवन मूल्यों में आस्था रखता है या जो व्यक्ति स्वयं को हिन्दू कहता है वह हिन्दू है”।
22 से 24 जनवरी 1966 को कुम्भ के अवसर पर 12 देशों के 25 हज़ार प्रतिनिधियों की सहभागिता के साथ प्रथम विश्व हिंदू सम्मेलन प्रयाग में आयोजित किया गया। 300 प्रमुख संतों की सहभागिता के साथ पहली बार भारत के प्रमुख शंकराचार्य भी एक साथ आए और धर्मांतरण पर रोक तथा परावर्तन (घर-वापसी) का संकल्प लिया गया। मैसूर के महाराज मा० चामराज जी वाडियार को अध्यक्ष व दादासाहब आप्टे को पहले महामंत्री के रूप में घोषित कर विहिप की प्रबंध समिति की घोषणा भी हुई। इस सम्मेलन में जहां परावर्तन को मान्यता देने का ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित हुआ वहीँ विहिप के बोध वाक्य “धर्मो रक्षति रक्षितः” और बोध चिह्न “अक्षय वटवृक्ष” भी तय हुआ।
हिन्दू समाज में व्याप्त अस्पृश्यता समाज के सामने एक बड़ी चुनौती थी। इस चुनौती को स्वीकारते हुए एक समरस समाज के पुन: निर्णय हेतु विहिप ने अपनी व्यापक कार्ययोजना बनाई। इस दुर्गम लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु संगठन ने अपने 58 वर्षों की तपश्चर्या में अनेक कार्य किए जो तत्कालीन परिस्थियों में बेहद दुरूह कहे जा सकते थे किन्तु उनकी सफलता ने आज हिन्दू समाज की दशा व दिशा दोनों को बदलने में अभूतपूर्व योगदान किया है। गत लगभग छ: दशकों में समाज के सहयोग से किए गए इन प्रयासों में से कुछ निम्न लिखित हैं:
13-14 दिसम्बर 1969 के उडुपी धर्म संसद में संघ के तत्कालीन सर-संघचालक श्री गुरूजी के विशेष प्रयासों के परिणाम स्वरूप, भारत के प्रमुख संतों ने एकस्वर से “हिन्दव: सोदरा सर्वे, ना हिन्दू पतितो भवेत्” के उद्घोष के साथ सामाजिक समरसता का ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया।
1994 में काशी में हुई धर्म संसद का निमंत्रण डोम राजा को देने पूज्य संत ना सिर्फ स्वयं चलकर गए बल्कि उनके घर का प्रसाद ग्रहण किया तथा अगले दिन डोम राजा धर्म संसद के अधिवेशन में संतों के मध्य बैठे और संतों ने उन्हें पुष्प हार पहनाकर स्वागत किया। इस धर्म संसद में 3500 संत उपस्थित थे। वनवासी, जनजाति, अति पिछड़ी व पिछड़ी जाति के हज़ारों लोगों को ग्राम पुजारी के रूप में प्रशिक्षण देकर उनका समय समय पर अभिनन्दन व मंदिरों में पुरोहित के रूप में नियुक्ति विहिप के ग्राम पुजारी प्रशिक्षण अभियान के कारण ही संभव हुई।
9 नवम्बर 1989 में श्रीराम जन्मभूमि का शिलान्यास एक अनुसूचित जाति के कार्यकर्ता कामेश्वर चौपाल द्वारा कराए जाने के अतिरिक्त, देश भर में आयोजित समरसता यज्ञ, समरसता यात्राएं, समरसता गोष्ठियां, हिन्दू परिवार मित्र योजना, अनुसूचित जाति व जन जातियों के लिए छात्रावास इत्यादि अनेक योजनाओं व कार्यक्रमों के माध्यम से हिन्दू समाज के बीच व्याप्त छूआछूत के अभिशाप से मुक्ति हेतु अभूतपूर्व कार्य किए हैं।
सन् 2003 से लगातार देशभर में भगवान वाल्मीकि, संत रविदास तथा संविधान निर्माता डॉ भीमराव अम्बेडकर इत्यादि महापुरुषों, जिन्होंने देश की समरसता में योगदान दिया, की जयन्तियां व्यापक रूप से मनाई जा रही हैं। इन सब कार्यक्रमों के परिणाम स्वरूप अब संत समाज सहज रूप से वंचित बस्तियों में प्रवास, प्रवचन व सह-भोज सहजता से करते हैं।
देश के वनवासी, गिरिवासी व नगरवासियों के कुम्भ के रूप में असम के जोरहाट में 27 से 29 मार्च 1970 में देश की सभी प्रमुख तीर्थों व 45 नदियों के जल से एकात्म हुए इस सम्मेलन में अनेक पूज्य संत-महात्माओं व पूर्वोत्तर के विचारकों के साथ नागारानी गाइडिन्ल्यु ने यह घोषणा की कि प्रकृति पूजक वनवासी समाज जिसे ईसाई मिशनरियां अपने चंगुल में फंसा रही हैं, हिन्दू समाज का ही अभिन्न अंग है।
1982 में श्री अशोक सिंघल विश्व हिन्दू परिषद के पदाधिकारी बने। व्यापक जन जागरण के कार्यक्रम होने लगे। हिन्दू समाज को एकाकार करने वाली 1983 में हुई एकात्मता यात्रा में तो देश के 6 करोड़ लोगों ने सहभाग किया। अप्रैल 1984 में धर्म संसद का प्रथम अधिवेशन नई दिल्ली में संपन्न हुआ। इसमें विविध मत-पंथ-संप्रदायों के प्रतिनिधि व पूज्य वरिष्ठ संतों की सहभागिता रही।
समग्र ग्राम विकास अभियान जिसे एकल अभियान के रूप में भी जानते हैं, के अंतर्गत एक पंचमुखी परियोजना से अब तक 55 लाख से अधिक बच्चे लाभान्वित हो चुके है तथा लगभग 30 लाख विद्यार्थी अभी भी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। उन्हें एक साथ दी जा रही प्राथमिक शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य, ग्राम विकास (गौ-पालन, जैविक कृषि, कौशल विकास), संस्कार (हरिकथा व सत्संग) व जागरण शिक्षा (ग्रामीण विकास योजनाओं की जानकारी व उनका उपयोग) के माध्यम से देश के सुदूर क्षेत्रों में बड़े परिवर्तन देखने को मिले हैं। इसमें आने वाले अधिकांश विद्यार्थी बँचित समाज से ही आते हैं। 26 फरवरी 2019 को भारत के राष्ट्रपति माननीय श्री रामनाथ कोविंद एवं माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस एकल अभियान को “गाँधी शांति पुरस्कार-2017” द्वारा राष्ट्रपति भवन में सम्मानित कर उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की गई।
देश के मठ-मंदिरों में पुरोहित प्रशिक्षित हों तथा ऊनमें समाज के हर वर्ग की भागीदारी हो। इस संबंध में विहिप के प्रयास अनुकरणीय हैं। देश भर में अब तक हजारों अर्चक-पुरोहित या पुजारियों को धार्मिक कर्मकांडों की शिक्षा-दीक्षा देकर विभिन्न मठ-मंदिरों में भगवान की सेवार्थ लगाया गया है। 50हजार प्रशिक्षणार्थियों में से लगभग 60% अनुसूचित जाति के तथा 15% अनुसूचित जन-जाति के बंधु भगिनियाँ हैं जो, आज भी अनेक छोटे बड़े मंदिरों के माध्यम से समाज में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। ब्राह्मण समाज के लोग ना सिर्फ इन सभी को पांडित्य में दक्ष करते हैं अपितु, बाद में भी उनकी हर प्रकार की मदद करते हैं।
‘एक गाँव, एक मंदिर, एक कुआ व एक शमसान’ का नारा भी विहिप ने ही दिया था। विद्वान व समाज चिंतक कहते हैं कि हर मंदिर की समिति में कम से कम एक संस्कृत का विद्वान हो, तो वहीं, एक प्रतिनिधि बँचित समाज से भी हो।
विश्व हिंदू परिषद द्वारा समाज के सहयोग से देश भर में 90 हजार से अधिक अन्य सेवा प्रकल्प भी चलाए जा रहे हैं। इनमें से लगभग 70 हजार संस्कार केंद्र, दो हजार से अधिक शिक्षा केंद्र, 1800 स्वास्थ्य केन्द्र, 1500 स्वावलंबन केंद्र तथा शेष लगभग 15 हजार केन्द्रों में आवासी छात्रावास, अनाथालय, चिकित्सा केंद्र, कम्प्यूटर, सिलाई, कढ़ाई प्रशिक्षण केंद्र, विवाह केंद्र, महा-विद्यालय, कॉलेज इत्यादि प्रमुख हैं। ये सभी केंद्र सामाजिक समरसता के अनुपम उदाहरण हैं।
सामाजिक चेतना के जागरण का ही परिणाम है कि विहिप ने अभी तक लगभग 63 लाख हिन्दुओं के धर्मांतरण को रोकने के साथ-साथ लगभग 9 लाख की घर-वापसी भी हुई है। अनुसूचित जाति, जन जाति, वनवासी व गिरिवासी समाज के बीच सेवा, समर्पण व स्वावलंबन के मंत्र के साथ देश दर्जन भर राज्यों में छल-बल पूर्वक धर्मान्तरण के विरुद्ध कठोर दण्ड की व्यवस्था वाले कानून विहिप के सतत प्रयासों के कारण ही बन पाए हैं।
भारत धर्म यात्राओं का देश है जिसकी आत्मा तीर्थों में वास करती है। इन यात्राओं के माध्यम से ही देश, धर्म व समाज की एकता, अखण्डता और समरसता प्रतिबिम्बित होती है। बात चाहे कांवड़ यात्रा की हो या कैलाश मान सरोवर की, अमर नाथ यात्रा हो या गोवर्धन परिक्रमा, जगन्नाथ की नव कलेवर यात्रा हो या सिन्धु यात्रा, श्रीराम जानकी विवाह बारात यात्रा हो या बाबा अमरनाथ की यात्रा, इन सभी को सस्ती, सफल, सुखद, संस्कारित व आध्यात्मिक स्वरूप देने में विश्व हिन्दू परिषद् के धर्मं यात्रा महासंघ ने वर्ष 1995 से एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। शासन-प्रशासन व सम्बन्धित सरकारों के साथ अनवरत संपर्क के माध्यम से इन्हें व्यवस्थित भी किया गया और समरस भी बनाया गया।
1984 में प्रारम्भ हुए श्री राम जन्म भूमि मुक्ति आन्दोलन ने देश के 3 लाख गाँवों के 16 करोड़ लोगों को जोडा। सड़क से संसद व सर्वोच्च न्यायालय तक अपनी आवाज बुलंद कर 492 वर्षों के संघर्ष के उपरांत, देश के स्वाभिमान की पुन: प्रतिष्ठा करते हुए, 5 अगस्त 2020 के अयोध्या में भूमि पूजन के ऐतिहासिक दिवस को स्वर्णाक्षरों में दर्ज करा दिया। अगले वर्ष तक रामलला अपने भव्य मंदिर में प्रतिष्ठित हो जाएंगे। इस आंदोलन ने विश्व भर के हिंदुओं को एक कर समरसता का एक नया बीजमंत्र दिया।
1995 में जब आतंकियों ने बाबा अमरनाथ की यात्रा को बंद करने की धमकी देते हुए यह कहा कि यदि कोई आएगा तो वापस नहीं जाएगा। बजरंगदल के आह्वान पर 51 हजार बजरंगी व एक लाख अन्य शिव भक्तों ने जय भोले की हुंकार भरते हुए उस दुर्गम यात्रा की ओर जब कूच किया तो उस यात्रा को रोकने का कोई आज तक दुस्साहस नहीं कर पाया। पूंछ जिले के सीमांत क्षेत्र को हिन्दू विहीन करने के जिहादी षड्यंत्र को भांपते हुए बजरंग दल ने 2005 में बाबा बूढ़ा अमरनाथ की यात्रा को जब पुन: प्रारम्भ कराया तो वहां से हिन्दुओं का पलायन भी रुका और समाज व सुरक्षा कर्मियों का आत्मविश्वास भी बढ़ा। हरियाणा के मेवात में गत वर्ष पुन: प्रारंभ हुई बृजमण्डल (मेवात) जलाभिषेक यात्रा भी समरस भारत की दिशा में एक अनुपम प्रयास है।
विहिप की युवा शाखा बजरंग दल तथा दुर्गा वाहिनी ने 1984 से लेकर आज तक देश-धर्म संस्कृति व राष्ट्र-रक्षा व समरस समाज के निर्माण हेतु अग्रणी भूमिका निभाई है। सेवा, सुरक्षा व संस्कार इनके मूल मंत्र रहे हैं।
विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा समरस समाज की दिशा में किए गए इन विभिन्न कार्यों के कारण हिन्दू दर्शन आज सम्पूर्ण विश्व के केंद्र में आ चुका है। अब विश्व को लगने लगा है कि हिन्दू दर्शन ही अब विश्व कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेगा।