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राष्ट्रपति चुनाव विचारधारा की लड़ाई: यशवंत सिन्हा

रांची, राष्ट्रपति चुनाव में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा ने कहा कि राष्ट्रपति चुनाव में कोई व्हिप नहीं होता है। ये गुप्त मतदान के माध्यम से होता है। संविधान के महान निर्माताओं ने गुप्त मतदान की विधि इसीलिए तैयार की थी ताकि राष्ट्रपति चुनाव में भाग लेने वाले सदस्य पार्टी के निर्णय से बाध्य होने की बजाए स्वतंत्र रूप से अपने अंतरात्मा की आवाज सुनें।
सिन्हा शनिवार को होटल बीएनआर में प्रेस कांफ्रेंस में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति ही हमारे संविधान में इकलौता पद है जो पूरे देश स्तर पर लड़ा जाता है लेकिन आज इस चुनाव ने अभियान का रूप ले लिया है। अब यह लड़ाई पहचान की नहीं बल्कि विचारधारा की हो गयी है।
उन्होंने कहा कि भारत के 15वें राष्ट्रपति का चुनाव बेहद मुश्किल समय में हो रहा है। हमारे गणतंत्र को संविधान के लिए इससे पहले कभी भी एक साथ इतने खतरों का सामना नहीं करना पड़ा। संसदीय लोकतंत्र की व्यवस्था, जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम की सबसे अनमोल देन थी, हर दिन नए खतरों का सामना कर रही है।
सिन्हा ने कहा कि सत्ताधारी दल को सत्ता पर कब्जा करने एवं अपनी ताकत बढ़ाने के लिए संविधान के मूल्यों, आदर्शों और अवरोधों का उल्लंघन करने में कोई शर्म या संकोच नहीं हो रहा है। विपक्षी दलों में दलबदल करवाने और उनके द्वारा चलाई जा रही राज्य सरकारों को गिराने के लिए ईडी, सीबीआई, आयकर विभाग जैसी एजेंसियों और यहां तक कि राज्यपाल कार्यालय का भी बेशर्मी से दुरुपयोग किया जा रहा है। इसके लिए बेहिसाब धन का इस्तेमाल किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि सार्वजनिक जीवन के अपने लंबे करियर में मैंने कभी भी ”ऑपरेशन लोटस” को लोकतंत्र के लिए इतना खतरनाक नहीं देखा। अगर निकट भविष्य में झारखंड में झामुमो-कांग्रेस सरकार को अस्थिर करने के लिए इसी तरह की गंदी रणनीति अपनाई जाए तो मुझे आश्चर्य नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था पूरी तरह से मिसमैनेज्ड है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये के मूल्य में सबसे बड़ी गिरावट वर्तमान प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान हुई है। जो रुपया 2014 में 58.44 का था आज 80.05 तक पहुंच गया है। ये और गिर सकता है। अभूतपूर्व मूल्य वृद्धि ने आम लोगों को बुरी तरह प्रभावित किया है।
उन्होंने कहा कि ऐसे समय में भारत को एक ऐसे राष्ट्रपति की जरूरत है जो संविधान के संरक्षक के रूप में कार्य करे। साथ ही सवाल किया कि क्या भारत में एक मौन राष्ट्रपति होना चाहिए? क्या भारत में रबर-स्टांप राष्ट्रपति होना चाहिए? क्या भारत के अगले राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री की रक्षा करनी चाहिए या संविधान की रक्षा करनी चाहिए?
साभार -हिस

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