ऋषिकेश, परमार्थ गंगा तट पर पर्यावरण और नदियों को समर्पित मानस कथा और स्वामी चिदानन्द सरस्वती की जयंती के अवसर पर मनाए जा रहे सेवा सप्ताह के दौरान संस्कृति और विरासत की रक्षा के अथक प्रयासों को समर्पित किया गया।
शनिवार को कार्यक्रम का शुभारंभ राज्यपाल उत्तराखंड गुरमीत सिंह, संस्कृति राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल , स्वामी चिदानन्द सरस्वती, संत रमेश भाई ओझा, मानस कथाकार संत मुरलीधर के दीप प्रज्ज्वलन से हुआ।
संस्कृति राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि ‘संत न होते जगत में तो जल जाता संसार’। उन्होंने सभी संतों को प्रणाम करते हुए कहा कि गुरु कृपा से जो प्राप्त होता है, वह धन कभी समाप्त नहीं होता और न कोई उसे चोरी कर सकता है। गुरु द्वारा दिये गये ज्ञान रूपी धन से भवसागर से पार हो जाते हैं।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती पिट्सबर्ग में प्रसिद्ध हिन्दू जैन मंदिर और सिडनी ऑस्ट्रेलिया में शिव मंदिर के संस्थापक और प्रेरणास्रोत हैं जिसका जिक्र राज्यपाल ने भी अपने उद्बोधन में किया है। उन्होंने कहा कि स्वामी ने दुनिया भर में अनेकों मंदिरों और भारतीय सांस्कृतिक केंद्रों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके संरक्षण एवं मार्गदर्शन में वर्ष 2012 में प्रकाशित हिन्दू धर्म विश्वकोष जो अब 11 खण्डों में उपलब्ध है और प्रत्येक खंड एक महाग्रंथ हैं। यह महाग्रंथ भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिये अनमोल धरोहर है। इसे भारत सहित विश्व के अनेक देशों के विश्वविद्यालयों एवं पुस्तकालयों में प्रतिष्ठित किया गया है। यह महाग्रन्थ हिन्दू धर्म पर शोध करने वाले छात्रों के लिये वरदान सिद्ध हुआ है। इस महाग्रंथ की प्रतियां राज्यपाल को भेंट की गयी।
स्वामी ने परमार्थ निकेतन प्रागंण में इण्डिया और इण्डोनेशिया के संगम का प्रतीक पद्मासना मन्दिर विराजित किया गया है इसके माध्यम से इण्डिया और इण्डोनेशिया में रहने वाले हिन्दुओं के मध्य सेतु बनाया जा रहा है। इससे पूरे विश्व को वसुधैव कुटुम्बकम् का, विश्व एक परिवार है का संदेश पहुंचाया जा रहा है। यह मन्दिर संस्कृतियों के आदान-प्रदान का अद्भुत संगम है।
स्वामी चिदानंद मुनि ने कहा कि भारत की संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम् की संस्कृति है। इस पावन सांस्कृतिक विरासत, धरोहर और इतिहास का संरक्षण करना हम सभी का परम कर्तव्य है। संस्कृति किसी भी समुदाय और राष्ट्र की वह अमूल्य निधि है जो सदियों से उस समुदाय या राष्ट्र के अवचेतन को अभिभूत करते हुए निरंतर समृद्ध होती रहती है और भारत की संस्कृति उन्हीं में से एक है।
संत रमेश भाई ओझा ने कहा कि सेवामय जीवन जीने वाले महापुरुष के 70 वें अवतरण उत्सव पर सेवा सप्ताह का आयोजन अतुलनीय है। हमारा जीवन पंच महाभूतों से बना हुआ है। पंचमहाभूतों को देव समझ कर हमें उनका पूजन और रक्षण करना चाहिये। स्वामी पेड़ लगाकर धरती माता का श्रृंगार कर अपने जीवन से हरियाली संवर्द्धन का संदेश देते है। एक पेड़ लगाने का मतलब है एक मंदिर बनाना। पेड़ लगाने से माता धरती का श्रृंगार होता है, अनेक पक्षियों को भोजन मिलता है, अनेकों को आश्रय मिलता है
विनोद बागरोड़िया ने कहा कि हमने मानवता की सेवा के लिये सेवा आश्रम बनाया है जिसके माध्यम से 4 लाख दिव्यांग बच्चों के लिये कृत्रिम हाथों और पैरों का निर्माण किया हैं। बच्चों की आखों की चिकित्सा के लिए मोबाइल वैन की सुविधाएं उपलब्ध करायी है। मंदबु़द्धि (सीपी) बच्चों और उनके माता-पिता के कष्टों के निवारण के लिये 40 करोड़ का अस्पताल बनाया जा रहा है ताकि समाज में खुशहाली आयें।
साभार-हिस
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