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फाइलेरिया रोधी दवाएं पूरी तरह सुरक्षित, स्वयं खाएं और परिजनों को भी खिलाएं

  • झारखण्ड सरकार, फाइलेरिया उन्मूलन हेतु प्रतिबद्ध, 7 मार्च  से  फाइलेरिया प्रभावित 6 जिलों में मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) कार्यक्रम की शुरुआत

रांची: झारखण्ड सरकार, राज्य से फाइलेरिया के उन्मूलन को लेकर प्रतिबद्ध है, और इसी के दृष्टिगत दिनांक 7 मार्च  से 12 मार्च तक राज्य के 6  जिलों यथा- साहिबगंज, बोकारो, धनबाद, रामगढ, गुमला और देवघर में लोगों को फाइलेरिया के प्रभाव यथा हाथीपांव आदि से बचाने के लिए मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) कार्यक्रम, कोविड-19 के दिशा-निर्देशों के अनुसार शुरू किया जा रहा है।

इस अवसर पर, राज्य कार्यक्रम अधिकारी, वेक्टर बोर्न डिजीजेज डॉ. एस.एन.झा ने कहा “राज्य सरकार, वर्ष 2030 तक फाइलेरिया रोग के झारखण्ड से पूर्ण उन्मूलन के लिए प्रतिबद्ध है और इसीलिए योजना अनुरूप एमडीए आयोजित किये जा रहे हैं। इसी क्रम में, राज्य सरकार द्वारा 7 मार्च से 12 मार्च तक साहिबगंज, बोकारो, धनबाद, रामगढ, गुमला और देवघर जिलों में कोविड-19 के दिशा-निर्देशों के अनुसार शारीरिक दूरी (दो गज की दूरी), मास्क और हाथों की साफ-सफाई का अनुपालन करते हुए मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) कार्यक्रम प्रारंभ किया जा रहा है।

इस कार्यक्रम में लगभग 11556921 लक्षित लाभार्थियों को उम्र के अनुसार फाइलेरिया रोधी दवाओं डी.ई.सी. और अल्बेंडाज़ोल की निर्धारित खुराक प्रशिक्षित दवा प्रशासकों द्वारा अपने सामने मुफ्त खिलाई जाएगी। इन दवाओं का सेवन खाली पेट नहीं करना है। 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और अति गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों को छोड़कर सभी लोगों को ये दवाएं खानी हैं। इस संक्रमण से स्वयं को और अपने परिवार को सुरक्षित रखने के लिए प्रशिक्षित दवा प्रशासकों द्वारा मुफ़्त दी जाने वाली फाइलेरिया रोधी दवाओं का सेवन उनके सामने ही अवश्य करें।

उन्होंने इस बात पर विशेष बल दिया कि दवाएं वितरित नहीं करनी है बल्कि अपने सामने ही खिलानी हैं “।  

विश्व स्वास्थ्य संगठन के एनटीडी के राज्य समन्वयक डॉ. अभिषेक पॉल ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार फाइलेरिया , दुनिया भर में दीर्घकालिक विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक है। किसी भी आयु वर्ग में होने वाले इस संक्रमण द्वारा शारीरिक अंगों में असामान्य सूजन हो जाती  है, जिसके कारण चिरकालिक रोग जैसे, हाइड्रोसील (अंडकोष की थैली में सूजन), लिम्फेडेमा (अंगों में सूजन) और दूधिया सफेद पेशाब (काईलूरिया) से ग्रसित लोगों को भीषण दर्द, और सामाजिक भेदभाव भी सहना पड़ता है, जिससे उनकी आजीविका व काम करने की क्षमता भी प्रभावित होती है।

डॉ. झा ने यह भी कहा कि एमडीए कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए राज्य स्तर से ब्लॉक स्तर तक सुनियोजित रणनीति बनाकर कार्य किया जा रहा है, दवा सेवन के दौरान, किसी भी विषम परिस्थिति के लिए रैपिड रेस्पोंस टीम तैनात रहेंगी। इसके साथ ही,  प्रतिदिन इस कार्यक्रम की गहन समीक्षा की जाएगी  ताकि इस कार्यक्रम के दौरान संपादित होने वाली सभी गतिविधियाँ गुणवत्तापूर्ण हों। इसके साथ ही उन्होंने बताया  कि राज्य में हाइड्रोसील और लिम्फेडेमा के  मरीजों को सूची को अद्यतन किया जाएगा जायेगा  ताकि उनके रोग का प्रबंधन सही तरीके से हो सके।

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