विनय श्रीवास्तव (स्वतंत्र पत्रकार)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरु पर्व के पावन अवसर पर तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी है। उन्होंने कहा है कि संसद के इसी सत्र में इन तीनों कृषि कानूनों को रद्द कर दिया जाएगा। साथ ही प्रधानमंत्री ने देशवासियों से यह कहते हुए माफी भी मांगी कि शायद उनके तपस्या में कोई कमी रह गई, जो वह कुछ किसानों को अपनी बात अच्छी तरह से नहीं समझा पाए। प्रधानमंत्री के इस आश्वासन के बाद आंदोलन में शामिल लोगों के चेहरे पर खुशी देखी जा सकती है। आंदोलन में शामिल लोगों ने प्रधानमंत्री का आभार जताया, मिठाईयां बांटी और एक-दूसरे को बधाइयां भी दी, लेकिन अब सबसे बड़ी बात यह है कि प्रधानमंत्री के आश्वासन के बाद आंदोलन कब समाप्त होगा ? आंदोलन समाप्त करने को लेकर जब राकेश टिकैत से पूछा गया तो उनका साफ कहना है कि अभी आंदोलन समाप्त नहीं होगा। राकेश टिकैत के इस जवाब का क्या मतलब है ? देश के किसानों को बर्गलाने के लिए वे अब कौन सा पैंतरा चलाएंगे? राकेश टिकैत के लिए ये तीनों कृषि कानून काले कानून थे। इन कानूनों से किसान गरीब हो जाते। उनका हक मारा जाता। एक बार के लिए उनकी बातों को मान लिया जाए तो आखिर क्या कारण रहा कि आजादी के सत्तर साल बाद भी किसान बदहाल रहे ? आखिर क्या कारण रहा कि इन सत्तर सालों में चार लाख से अधिक किसानों ने आत्महत्या की? वे कौन से कारण रहे कि किसान गरीब होते गए और किसानों के नाम पर नेतागिरी करने वाले राकेश टिकैत जैसे लोग करोड़पति बनते गए ? इन प्रश्नों का उत्तर तो देश के लोगों को ढूंढना ही पड़ेगा ? राजीनीतिक परिपेक्ष्य में यदि कृषि कानूनों की वापसी देखा जाए तो विपक्षी पार्टियों और आंदोलनजीवियों के लिए यह जरूर जोर का झटका है। अब वे किस मुद्दे पर सरकार को घेरेंगे ? कैसे अपनी दुकान चलाएंगे ? सरकार को घेरने के लिए इनके पास सिर्फ यही एक मुद्दा था। कृषि कानून और किसानों के कंधों पर बंदूक रखकर पिछले एक साल से गोलियां चलाई जा रही थीं। मोदी विरोधी होते होते ये लोग कब राष्ट्र विरोधी हो गए, इन्हें भी पता नहीं चल पाया। गणतंत्र दिवस के दिन भारत को विश्वपटल पर शर्मसार किया गया। यह कभी नहीं भूलने वाली पीड़ा है। इधर राजनीतिक दलों में क्रेडिट लेने की होड़ लगी हुई है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी से लेकर राजद और अन्य किसान नेता यह कहते नहीं थक रहे हैं कि उनके दबाव के कारण ही प्रधानमंत्री ने कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है। जिस प्रकार प्रधानमंत्री ने खुले मन से देशवासियों से माफी मांगी है, विपक्ष और किसान नेताओं को भी चाहिए कि अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के बजाय वास्तव में किसानों और जनता के हित के बारे में सोंचें। आंदोलन को समाप्त करें। सिंघु बॉर्डर, गाजीपुर बॉर्डर व आस पास के गांवों के लोग पिछले एक साल से परेशान हैं। आंदोलन को समाप्त कर अब आम जनता को राहत दें।