“पंजाब विधानसभा का यह विशेष सत्र केंद्र सरकार को याद दिलाता है कि 86 प्रतिशत किसानों के पास अल्प भूमि जोत है, जो अन्य ग्रामीण कार्यबल जैसे बढ़ई, बुनकर, राजमिस्त्री और अकुशल मजदूरों के साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। केंद्र सरकार इन विवादास्पद कानूनों के माध्यम से उन्हें उनकी जमीनों और व्यवसायों से बेदखल करने और उन्हें कॉर्पोरेट लोगों की दया पर रखने का मार्ग प्रशस्त कर रही है। इन कानूनों को केवल पढ़ने से पता चलता है कि ये बड़े पैमाने पर निगमों के पक्ष में हैं और छोटे और सीमांत किसानों के हितों के लिए हानिकारक हैं। पंजाब विधानसभा ग्रामीण गरीबों के खिलाफ इस मंसूबे में एक पक्ष नहीं हो सकती है बल्कि यह तीन असंवैधानिक कानूनों को रद्द करने के लिए किसानों और ग्रामीण जनशक्ति को उनके संघर्ष में पूरी तरह से समर्थन देने का संकल्प लेती है। पंजाब विधानसभा का यह विशेष सत्र संसद में एक विशेष कानून बनाने की मांग करता है, जो सीमांत और छोटे किसानों के हितों की रक्षा करे, ताकि उन्हें कॉरपोरेट लोगों द्वारा उनके आसन्न शोषण से बचाया जा सके। उक्त के मद्देनज़र, पंजाब विधानसभा का यह विशेष सत्र कृषि मंत्री पंजाब द्वारा पेश किए गए और सदन द्वारा पारित एक प्रस्ताव के माध्यम से, एक बार फिर उन तीन विवादास्पद विधानों को खारिज करता है, जिन्हें सरकार द्वारा अधिनियमित किया गया था।”
पेश किए गए इस प्रस्ताव पर आम आदमी पार्टी के विधायक कुलतार सिंह संधवां ने प्रश्न किया कि केंद्र सरकार के कानून को पंजाब विधानसभा कैसे रद्द कर सकती हैं । उन्होंने सत्ताधारी कांग्रेस के इस प्रयास को महज ड्रामा बताते हुए कहा कि इसके लिए तो दिल्ली में जाकर सभी को आंदोलन करना चाहिए। विभिन्न दलों के विधायकों ने इस पर अपने अपने विचार रखे। हालांकि इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया परन्तु मुख्यमंत्री चन्नी के सम्बोधन से खफा हुए विपक्ष ने बार-बार अपनी नाराजगी का इजहार किया, जिसके चलते विधान सभा की कार्यवाही को दो बार (10 मिनट और फिर 19 मिनट के लिए) स्थगित करना पड़ा।
साभार-हिस