कोर्ट ने कहा कि अगर किसी को लगता है कि उसके अधिकारों का उल्लंघन किया गया है तो वह कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। सर्च और छापे की प्रक्रिया तथ्यों के आधार पर होती है। हर छापे की कार्रवाई की वीडियोग्राफी करना संभव नहीं है। कई बार छापे तुरंत मारने होते हैं और वह भी प्रतिकूल समय में।
पिछली 28 जुलाई को कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। याचिका वकील निखिल बोरवानकर ने दायर की थी। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि किसी वकील पर छापा या सर्च करने के लिए अपराध प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों का पालन करने के लिए दिशानिर्देश जारी करने की जरूरत है। एक वकील के दफ्तर में छापा मारने के दौरान उसका मोबाइल फोन भी ले लिया गया, जिसमें मुवक्किलों की कई गोपनीय जानकारी होती है।
प्रशांत भूषण ने कहा था कि अपराध प्रक्रिया संहिता में सर्च आपरेशन से पहले समन जारी करना जरूरी है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से जारी 28 दिसंबर 2020 के उस बयान का जिक्र किया जिसमें एक वकील के दफ्तर पर सर्च आपरेशन चलाने पर चिंता व्यक्त की गई थी। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने इस सर्च आपरेशन को गैरकानूनी और मनमाना बताया था। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से एएसजी चेतन शर्मा ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि याचिका में किस वकील की चर्चा की गई है, ये नहीं बताया गया है। यहां तक कि याचिका में पक्षकार किसे बनाया गया है, ये भी स्पष्ट नहीं है। इस याचिका में आईबी और एनआईए को भी जरूरी पक्षकार बनाया जाना चाहिए।
चेतन शर्मा ने कहा था कि सर्च अभियान अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग तरीके से होते हैं। अगर इस याचिका को स्वीकार किया गया तो इसका मतलब है कि नया कानून जो बनाया नहीं जा सकता है।
साभार-हिस