भगवान विष्णु का एक नाम चक्रधर है। इनका यह नाम इसलिए है, क्योंकि इनकी उंगली में सुदर्शन नामक चक्र घूमता रहता है। इस चक्र के विषय में कहा जाता है कि यह अमोघ है और जिस पर भी इसका प्रहार होता है, उसका अंत करके ही लौटता है।
भगवान विष्णु ने जब श्री कृष्ण रुप में अवतार लिया था, तब भी उनके पास यह चक्र था। इसी चक्र से इन्होंने जरासंध को पराजित किया था, शिशुपाल का वध भी इसी चक्र से किया गया था।
श्री कृष्ण अवतार में यह चक्र भगवान श्री कृष्ण को परशुराम जी से प्राप्त हुआ था, क्योंकि रामावतार में परशुराम जी को भगवान राम ने चक्र सौंप दिया था और कृष्णावातार में वापस करने के लिए कहा था, लेकिन भगवान विष्णु के पास यह चक्र कैसे मिला इसकी बड़ी ही रोचक कथा है।
इस तरह भगवान विष्णु को मिला सुदर्शन चक्र
वामन पुराण में बताया गया है श्रीदामा नामक एक असुर था। इसने सभी देवताओं को पराजित कर दिया। इसके बाद भगवान विष्णु के श्रीवत्स को छीनने की योजना बनाई।
इससे भगवान विष्णु क्रोधित हो गए और श्रीदामा को दंडित करने के लिए भगवान शिव की तपस्या में करने लगे। भगवान विष्णु की तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने भगवान विष्णु को एक चक्र प्रदान किया जिसका नाम सुदर्शन चक्र था। भगवान शिव ने कहा कि यह अमोघ है, इसका प्रहार कभी खाली नहीं जाता।
भगवान विष्णु ने कहा कि प्रभु यह अमोघ है, इसे परखने के लिए मैं सबसे पहले इसका प्रहार आप पर ही करना चाहता हूं।
जब विष्णु ने किया शिव पर सुदर्शन चक्र से प्रहार
भगवान शिव ने कहा अगर आप यह चाहते हैं तो प्रहार करके देख लीजिए। सुदर्शन चक्र के प्रहार से भगवान शिव के तीन खंड हो गए। इसके बाद भगवान विष्णु को अपने किए पर प्रयश्चित होने लगा और शिव की आराधना करने लगे।
भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि सुदर्शन चक्र के प्रहार से मेरा प्राकृत विकार ही कटा है। मैं और मेरा स्वभाव क्षत नहीं हुआ है यह तो अच्छेद्य और अदाह्य है।
भगवान शिव विष्णु से कहा कि आप निराश न होइये। मेरे शरीर के जो तीन खंड हुए हैं अब वह हिरण्याक्ष, सुवर्णाक्ष और विरूपाक्ष महादेव के नाम से जाना जाएगा। भगवान शिव अब इन तीन रुपों में भी पूजे जाते हैं।
इसके बाद भगवान विष्णु ने श्रीदामा से युद्घ किया और सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया। इसके बाद से सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु के साथ सदैव रहने लगा।
साभार पी श्रीवास्तव