नई दिल्ली, विश्व आज अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मना रहा है। जब पूरी दुनिया से बाघों की गणना कम होती जा रही थी, ये विलुप्ति के कगार पर पहुंच गई थे, तब सबसे पहले भारत ही दुनिया का वह देश रहा, जिसने पर्यावरणीय चक्र में जीवों के महत्व को रेखांकित करते हुए इस बात पर गहराई से जोर दिया कि प्रकृति के सफल चक्र के लिए हर जीव का अपना महत्व है और उसका जीवन एवं अस्तित्व बेहद जरूरी है। बाघ उसका अहम हिस्सा है, इसलिए इसके विकास पर पूरे विश्व को ध्यान देना चाहिए। यहां भारत ने जो चिंता व्यक्त की वह उस पर केवल बोला ही नहीं बल्कि व्यवहार में लाकर उसने उस पर अमल भी किया है। यही कारण है कि आज पूरे विश्व में सबसे अधिक बाघ संरक्षण कहीं हो सका तो वह हमारा भारत ही है। बाघ भारत का राष्ट्रीय पशु है । भारतीयों ने बाघ को देश की शक्ति, शान, सतर्कता, बुद्धि और धीरज का प्रतीक माना है। पूरे विश्व में 3900 टाइगर कुल बचे हैं, जिनमें से 2967 टाइगर भारत में हैं।
जब बचे थे सिर्फ 1700 बाघ, तब हुई विश्व को इनकी चिंता
दुनिया भर के सिर्फ 13 देश ही ऐसे हैं जहां पर बाघ पाए जाते हैं । बाघ संरक्षण को प्रोत्साहित करने और बाघों की घटती संख्या के प्रति जागरूकता लाने के लिए 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में एक सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसमें अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाने की घोषणा की गई और विश्व के सामने लक्ष्य रखा गया कि वर्ष 2022 तक बाघों की संख्या को दोगुना करेंगे। इस सम्मेलन में बताया गया कि अगर इसी प्रकार बाघों की तस्करी और हत्या होती रही तो आने वाले एक या दो दशकों में यह विलुप्त हो जायेगा।
इसके बाद इस पर सबसे तेज कार्य भारत में ही शुरू हुआ और तेजी के साथ इनकी संख्या यहां बढ़ती हुई देखी जा रही है। जहां साल 2010 में भारत में बाघों की संख्या 01 हजार 7 सौ के करीब थी, वह पिछले दस सालों में सत्तर प्रतिशत तक बढ़ गई है। इसी प्रकार से अन्य 12 देशों में भी बाघों का बढ़ना जारी है। आज अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के जरिए लोगों को बाघ के संरक्षण के प्रति जागरूक किया जा रहा है। इसमें सबसे महत्व का हिस्सा है पारिस्थितिक तंत्र में बाघों के महत्व को बताया जाना और इनके संरक्षण के लिए ‘सेव द टाइगर’ जैसे अभियानों का निरंतर चलाया जाते रहना है। इसका परिणाम वर्तमान में बाघों के बढ़ते कुनबे के रूप में हम सभी के सामने है।
इस बार की थीम है ‘उनकी उत्तरजीविता हमारे हाथों में है’
बाघ संरक्षण के लिए जब से अंतरराष्ट्रीय दिवस घोषित हुआ है तब से प्रत्येक वर्ष उसके विस्तार एवं सुखद वातावरण को लेकर कोई एक थीम लेकर वर्ष भर आगे बढ़ा जाता है, इस दृष्टि से देखें तो इस बार अन्तरराष्ट्रीय टाइगर दिवस पर जो थीम एवं मुख्य विषय तय किया गया है वह है ‘उनकी उत्तरजीविता हमारे हाथों में है’ थीम के व्यवहारिक पक्ष के अमल पर गौर करें तो इस पर अब तक सबसे अधिक काम वास्तविकता में भारत में ही हुआ है। क्योंकि विश्व वन्यजीव कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के अनुसार, टाइगर की संख्या दुनिया भर में अभी 3900 है। जिसमें कि यह तेजी से भारत में ही अपनी वृद्धि कर पाने में सफल रहे हैं क्योंकि भारत सरकार एवं राज्य सरकारों ने इसके लिए उन्हें सुरम्य वातावरण (जंगल) उन्हें उपलब्ध कराया है। बता दें कि वैश्विक स्तर एवं भारत के स्तर पर देखें तो बाघों की जनगणना हर चार साल में होती है जिससे उनकी ग्रोथ रेट का पता लगाया जाता है ।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए है ये प्रसन्नता का विषय
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरुवार को इस पर अपनी प्रसन्नता कुछ इस तरह से व्यक्त की है । ”अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस पर वन्यजीव प्रेमियों, विशेष रूप से बाघ संरक्षण के प्रति उत्साही लोगों को बधाई। विश्व स्तर पर बाघों की 70 प्रतिशत से अधिक आबादी का घर, हम अपने बाघों के लिए सुरक्षित आवास सुनिश्चित करने और बाघों के अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र को पोषित करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हैं। भारत 18 राज्यों में फैले 51 बाघ अभयारण्यों का घर है। 2018 की अंतिम बाघ गणना में बाघों की आबादी में वृद्धि देखी गई है। भारत ने बाघ संरक्षण पर सेंट पीटर्सबर्ग घोषणा की अनुसूची से 4 साल पहले बाघों की आबादी को दोगुना करने का लक्ष्य हासिल किया है। बाघ संरक्षण की भारत की रणनीति स्थानीय समुदायों को शामिल करने को सर्वोच्च महत्व देती है। हम सभी वनस्पतियों और जीवों के साथ सद्भाव में रहने के हमारे सदियों पुराने लोकाचार से भी प्रेरित हैं, जिनके साथ हम अपने महान ग्रह को साझा कर रहे हैं।”
India’s strategy of tiger conservation attaches topmost importance to involving local communities. We are also inspired by our centuries old ethos of living in harmony with all flora and fauna with whom we share our great planet. pic.twitter.com/WSwvPprNuJ
— Narendra Modi (@narendramodi) July 29, 2021
On #InternationalTigerDay, greetings to wildlife lovers, especially those who are passionate about tiger conservation. Home to over 70% of the tiger population globally, we reiterate our commitment to ensuring safe habitats for our tigers and nurturing tiger-friendly eco-systems. pic.twitter.com/Fk3YZzxn07
— Narendra Modi (@narendramodi) July 29, 2021
India is home to 51 tiger reserves spread across 18 states. The last tiger census of 2018 showed a rise in the tiger population. India achieved the target of doubling of tiger population 4 years ahead of schedule of the St. Petersburg Declaration on tiger Conservation. pic.twitter.com/s8Myy0os0v
— Narendra Modi (@narendramodi) July 29, 2021
भारत में हैं 2 हजार 967 से अधिक बाघ
फिलहाल देशभर में बाघों की संख्या तेजी से बढ़ने के साथ ही उनके ऑक्युपेंसी एरिया भी बढ़ रहा है । इस संबंध में आई अब तक की सभी रिपोर्ट इस ओर ध्यान दिलाती हैं कि भारत के केरल, उत्तराखंड, बिहार और मध्यप्रदेश में बाघों की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी होते देखी जा रही है । नवीनतम बाघ गणना के अनुसार भारत में बाघ की संख्या 2 हजार 967 है जो विश्व की संख्या का लगभग 70 प्रतिशत से अधिक है। कहना होगा कि 2018 की बाघ गणना के बाद जिसे कि 2019 में जारी किया था के अनुसार भारत में बाघों की संख्या पूरे विश्व में सर्वाधिक बनी हुई है। अब तक के सबसे बड़े बाघ गणना के रूप में भारत का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज कराया गया है।
देश में हैं 52 टाइगर रिजर्व
साल 1973 में भारत में सिर्फ 9 टाइगर रिजर्व थे जबकि आज की तारीख में इनकी संख्या बढ़कर 51 हो गई है । भारत ने टाइगर की घटती संख्या को देखते हुए 1973 में एक अधिनियम पारित किया था जिसका नाम ”प्रोजेक्ट टाइगर” है । जब अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस घोषित किया जा रहा था, उस वर्ष 2010 को देखें तो भारत में कुछ 752 टाइगर थे। भारत में सबसे ज्यादा टाइगर मध्य प्रदेश (526), कर्नाटक (524), उत्तराखंड (442) टाइगर है। अगर इन तीनों राज्य को मिला दिया जाये तो 50 प्रतिशत टाइगर इन्हीं राज्य में है।
टाइगर रिजर्व को देखें तो यह बांदीपुर कर्नाटक, कॉर्बेट उत्तराखंड, कान्हा मध्य प्रदेश, मानस असम, मेलघाट महाराष्ट्र, पलामू झारखंड, रणथंभौर राजस्थान, सिमिलिपाल ओडिशा, सुंदरबन पश्चिम बंगाल, पेरियार केरल, सरिस्का राजस्थान, बक्सा पश्चिम बंगाल, इंद्रावती छत्तीसगढ़, नमदाफा अरुणाचल प्रदेश, दुधवा उत्तर प्रदेश, कलाकड़-मुंडनथुराई तमिलनाडु, वाल्मीकि बिहार, पेंच मध्य प्रदेश, तडोबा-अंधारी महाराष्ट्र, बांधवगढ़ और पन्ना मध्य प्रदेश, डम्पा मिजोरम, भद्रा कर्नाटक, पेंच मध्य प्रदेश, पक्के या पाखुई अरुणाचल प्रदेश, नामेरी असम, सतपुड़ा मध्य प्रदेश, अनामलाई तमिलनाडु, उदंती-सीतानदी छत्तीसगढ़ , सतकोसिया ओडिशा , काजीरंगा असम, अचानकमार छत्तीसगढ़, दांदेली-अंशी टाइगर रिजर्व (काली) कर्नाटक, संजय-दुबरी मध्य प्रदेश, मुदुमलाई तमिलनाडु, नागरहोल कर्नाटक, परम्बिकुलम केरल, सह्याद्री महाराष्ट्र, बिलिगिरी रंगनाथ मंदिर कर्नाटक, कवल तेलंगाना, सत्यमंगलम तमिलनाडु, मुकंदरा हिल्स राजस्थान, नवेगांव-नागजीरा महाराष्ट्र, अमराबाद तेलंगाना, पीलीभीत उत्तर प्रदेश, बोर महाराष्ट्र, राजाजी उत्तराखंड, ओरंग असम, कमलांग अरुणाचल प्रदेश, श्रीविल्लीपुथुर- मेगामलाई तमिलनाडु और रामगढ़ विषधारी राजस्थान है।
सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को मिला है अर्थ नेटवेस्ट ग्रुप अर्थ हीरोज पुरस्कार
प्रकृति संरक्षण के क्षेत्र में मध्यप्रदेश के खाते में एक और उपलब्धि जुड़ी है। प्रदेश के सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन के लिये अर्थ गार्जियन श्रेणी में नेटवेस्ट ग्रुप अर्थ हीरोज का पुरस्कार मिला है। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को विश्व धरोहर की संभावित सूची में भी शामिल किया गया है। होशंगाबाद जिले में सतपुड़ा टाइगर रिजर्व 2130 वर्ग किलोमीटर में फैला क्षेत्र है। यह डेक्कन बायो-जियोग्राफिक क्षेत्र का हिस्सा है। अभूतपूर्व प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर यह देश की प्राचीनतम वन संपदा है, जो बड़ी मेहनत से संजोकर रखी गई है।
हिमालय क्षेत्र में पाई जाने वाली वनस्पतियों में 26 प्रजातियां और नीलगिरि के वनों में पाई जाने वाली 42 प्रजातियां सतपुड़ा वन क्षेत्र में भी भरपूर पाई जाती हैं। इसलिये विशाल पश्चिमी घाट की तरह इसे उत्तरी घाट का नाम भी दिया गया है। कुछ प्रजातियां जैसे कीटभक्षी घटपर्णी, बांस, हिसालू, दारूहल्दी सतपुड़ा और हिमालय दोनों जगह मिलती हैं। इसी तरह पश्चिमी घाट और सतपुड़ा दोनों जगह जो प्रजातियां मिलती हैं, उनमें लाल चंदन मुख्य हैं। सिनकोना का पौधा, जिससे मलेरिया की दवा कुनैन बनती है, यहां बड़े संकुल में मिलता है।
उल्लेखनीय है कि सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को भारत के मध्य क्षेत्र के ईको-सिस्टम की आत्मा कहा जाता है। यहां अकाई वट, जंगली चमेली जैसी वनस्पतियां हैं, जो अन्यत्र नहीं मिलती। बाघों की उपस्थिति और उनके प्रजनन क्षेत्र के रूप में सतपुड़ा नेशनल पार्क की अच्छी-खासी प्रसिद्धि है। बाघों की अच्छी उपस्थिति वाले मध्यभारत के क्षेत्रों में से एक है। संरक्षित क्षेत्रों के भीतरी प्रबंधन के मान से सतपुड़ा टाइगर रिजर्व अपने आप में देश का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। देश के बाघों की संख्या का 17 प्रतिशत और बाघ रहवास का 12 प्रतिशत क्षेत्र सतपुड़ा में ही आता है। यह देश का सर्वाधिक समृद्ध जैव विविधता वाला क्षेत्र है।
साभार-हिस