काठमांडू। चीन के आपराधिक समूह के जाल में फंसे 13 नेपाली नागरिकों को म्यांमार से मुक्त कराकर नेपाल वापस लाया गया है। ये लोग नौकरी के नाम पर झांसा देकर यांगून के रास्ते सुदूर गांव में बन्धक बना कर रखे गए थे।
डिजिटल ठगी के धंधे में रहे चीनी आपराधिक समूह ने नौकरी का झांसा देकर इन नेपाली नागरिकों को बैंकाक के रास्ते वहां से 700 किलोमीटर दूर म्यांमार और बैंकाक के बॉर्डर के एक गांव में बन्धक बना कर रखा था। काठमांडू के अखबार में नौकरी का विज्ञापन देकर बाकायदा परीक्षा और इंटरव्यू लेने के बाद इन्हें नौकरी पर ले जाया गया था। बाद में बैंकाक के नाम पर जब म्यांमार बॉर्डर पहुंचाया गया, तब इन सबका पासपोर्ट जब्त कर लिया गया।
थाईलैंड और म्यांमार स्थित नेपाली दूतावास के समन्वय में इन 13 नागरिकों को सीमावर्ती उस गांव से सुरक्षित बाहर निकाला गया था। इस कार्य में दोनों देशों के सुरक्षाकर्मियों की सहायता ली गई थी। म्यांमार स्थित नेपाल के राजदूत हरिश्चन्द्र घिमिरे ने बताया कि इन नेपाली नागरिकों को जहां बन्धक बनाया गया था, वहां म्यांमार के विद्रोही समूह का कब्जा है। उन्होंने बताया कि मुक्त कराए गए नेपाली नागरिकों को विद्रोही समूह की नजर से बचाने के लिए स्थानीय मेनपावर एजेंट को रिश्वत देनी पड़ी, जिसके बाद उन्हें चीनी समूह के बन्धकों से छुड़ा कर थाईलैंड की सीमा में प्रवेश कराया गया।
घिमिरे ने बताया कि चूंकि चीनी आपराधिक समूह ने इन सबके पासपोर्ट जब्त कर लिये थे, इसलिए थाईलैंड सरकार की तरफ से इन सबके लिए ट्रैवल डॉक्यूमेंट जारी कर वीजा उपलब्ध कराया गया था। बैंकाक के रास्ते इन नेपाली नागरिकों को शनिवार सुबह काठमांडू लाया गया है। सरकार ने इनकी पहचान सार्वजनिक नहीं की है। इन सभी से अभी विदेश मंत्रालय, अध्यागमन विभाग के अधिकारी पूछताछ कर रहे हैं। सरकार नेपाल के मेनपावर कंपनी का पता लगा रही है, जिसने इन्हें वहां भेजने में चीनी आपराधिक समूह की मदद की थी।
विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने मुक्त कराए गए नेपाली नागरिकों के हवाले से बताया कि इनसे वहां पर रात के 9 बजे से अगले दिन दोपहर के 1 बजे तक लगातार काम करवाया जाता था। म्यांमार से बच कर लौटे नेपाली नागरिकों ने पूछताछ में यह भी बताया कि उन्हें फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, टिकटॉक के फर्जी अकाउंट बना कर उसके जरिए ऑनलाइन गैंबलिंग कराया जाता था। कई बार लोगों को मैसेज भेज कर उनसे अपने अकाउंट में पैसे भी मांगने के लिए कहा जाता था।
साभार – हिस