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अक्षय तृतीया आज, पुरी धाम में विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के लिए आरंभ होगा तीन रथों का निर्माण

भुवनेश्वर। अक्षय तृतीय शुक्रवार को है। ओडिशा प्रदेश भारतवर्ष का एक आध्यात्मिक प्रदेश है, जहां के श्री जगन्नाथ पुरी धाम के श्रीमंदिर (लक्ष्मी-मंदिर) में अनादि काल से विराजमान हैं कलियुग के एकमात्र पूर्ण दारुब्रह्म भगवान जगन्नाथ। वे विश्व मानवता के स्वामी हैं अर्थात् जगत के नाथ हैं। वे विश्व शांति, एकता और मैत्री के समस्त देवों के समाहार विग्रह स्वरुप दारुब्रह्म देव हैं। उनकी विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा इस वर्ष आगामी 07 जुलाई को आषाढ शुक्ल द्वितीया को वहां के श्रीमंदिर के सिंहद्वार ठीक सामने बड़दाण्ड पर भव्यतम रुप में निकलेगी और वह पतितपावनी यात्रा तथा सांस्कृतिक महोत्सव विश्व भाईचारे का संदेश देती हुई लगभग 3 किलोमीटर की दूरी तयकर गुण्डीचा मंदिर में सम्पन्न होगी।

गौरतलब है कि भगवान जगन्नाथजी की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के लिए प्रतिवर्ष तीन नये रथों का निर्माण होता है, जो श्रीमंदिर के समस्त रीति-नीति के तहत वैशाख मास की अक्षय तृतीया से आरंभ होता है। रथ-निर्माण की अत्यंत गौरवशाली सुदीर्घ परम्परा है। इस कार्य को वंशानुगत क्रम से सुनिश्चित बढईगण ही करते हैं। यह कार्य पूर्णतः शास्त्रसम्मत विधि से संपन्न होता है। रथनिर्माण विशेषज्ञों का यह मानना है कि तीनों रथ, बलभद्रजी का रथ तालध्वज रथ,सुभद्राजी का रथ देवदलन रथ तथा भगवान जगन्नाथ के रथ नंदिघोष रथ का निर्माण पूरी तरह से शास्त्रसम्मत तथा वैज्ञानिक तरीके से होता है। रथ-निर्माण के लिए इसवर्ष, 2024 में रथ निर्माण के लिए काष्ठ्य संग्रह का पवित्र कार्य विगत 14 फरवरी अर्थात् वसंत पंचमी से आरंभ हुआ। काष्ठसंग्रह दशपल्ला के जंगलों से प्रायः होता है। रथनिर्माण का कार्य पुरी के गजपति महाराजा जो भगवान जगन्नाथ के प्रथम सेवक हैं, श्रीश्री दिव्य सिंहदेवजी उनके राजमहल श्रीनाहर के ठीक सामने रखखल्ला में प्रतिवर्ष होता है। रथ रथनिर्माण का कार्य वंशपरम्परानुसार भोईसेवायतगण अर्थात् श्रीमंदिर से जुडे बढईगण ही करते हैं। इनको पारिश्रमिक के रुप में पहले जागीर दी जाती थी, लेकिन अब जागीर प्रथा समाप्त होने के बाद उन्हें श्रीमंदिर की ओर से पारिश्रमिक दिया जाता है। रथ-निर्माण में कुल लगभग 205 प्रकार के अलग-अलग सेवायतगण सहयोग करते हैं। पौराणिक मान्यता के आधार पर रथ-यात्रा के क्रम में रथ मानव-शरीर का प्रतीक होता है, उसके रथि मानव-आत्मा के प्रतीक, सारथि-मानव-बुद्धि, लगाम मानव-मन तथा रथ के घोड़े मानव-इन्द्रीयगण के प्रतीक होते हैं। रथ-निर्माण कार्य में लगभग दो महीने का समय लगता है।

रथ-विवरणः

भगवान बलभद्र जी का रथःतालध्वज रथ

यह रथ बलभद्रजी का रथ है जिसे बहलध्वज भी कहते हैं। यह 44 फीट ऊंचा होता है। इसमें 14 चक्के लगे होते हैं। इसके निर्माण में कुल 763 काष्ठ खण्डों का प्रयोग होता है। इस रथ पर लगे पताकों को नाम उन्नानी है। इस रथ पर लगे नये परिधान के रुप में लाल-हरा होता है। इसके घोड़ों के नाम तीव्र, घोर, दीर्घाश्रम और स्वर्णनाभ हैं। घोड़ों का रंग काला होता है। रथ के रस्से का नाम बासुकी होता है। रथ के पार्श्व देव-देवतागण के रुप में गणेश, कार्तिकेय, सर्वमंगला, प्रलंबरी, हलयुध, मृत्युंजय, नतंभरा, मुक्तेश्वर तथा शेषदेव हैं। रथ के सारथि हैं मातली तथा रक्षक हैं-वासुदेव।

देवी सुभद्राजी का रथः देवदलन रथ

यह रथ सुभद्राजी का है जो 43 फीट ऊंचा होता है। इसे देवदलन तथा दर्पदलन भी कहा जाता है। इसमें कुल 593 काष्ठ खण्डों का प्रयोग होता है। इसपर लगे नये परिधान का रंग लाल-काला होता है। इसमें 12 चक्के होते हैं। रथ के सारथि का नाम अर्जुन है। रक्षक जयदुर्गा हैं। रथ पर लगे पताके का नाम नदंबिका है। रथ के चार घोड़े हैं – रुचिका, मोचिका, जीत तथा अपराजिता हैं। घोड़ों का रंग भूरा है। रथ में उपयोग में आनेवाले रस्से का नाम स्वर्णचूड़ है। रथ के पार्श्व देव-देवियां हैः चण्डी, चमुण्डी, उग्रतारा, शुलीदुर्गा, वराही, श्यामकाली, मंगला और विमला हैं।

भगवान जगन्नाथ का रथः नन्दिघोष रथ

यह रथ भगवान जगन्नाथजी का रथ है, जिसकी ऊंचाई 45 फीट होती है। इसमें 16 चक्के होते हैं। इसके निर्माण में कुल 832 काष्ठ खण्डों का प्रयोग होता है। रथ पर लगे नये परिधानों का रंग लाल-पीला होता है। इसपर लगे पताके का नाम त्रैलोक्यमोहिनी है। इसके सारथि दारुक तथा रक्षक हैं –गरुण। इसके चार घोड़े हैं शंख, बलाहक, सुश्वेत तथा हरिदाश्व। इस रथ में लगे रस्से का नामः शंखचूड़ है। रथ के पार्श्व देव-देवियां हैः वराह, गोवर्धन, कृष्ण, गोपीकृष्ण, नरसिंह, राम, नारायण, त्रिविक्रम, हनुमान तथा रुद्र हैं।

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