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हाय रे व्यवस्था-अनाथ बुजुर्ग को अस्पताल से बाहर निकाला, डाक्टरों ने दिल पर जख्म दे डाला

  • डाक्टरों ने बढ़ाई पीड़ा, दर्द का इलाज नहीं, अनाथ होने के जख्म को कुरेदा

  • परिवार के सदस्य नहीं आने के कारण भर्ती करने से किया इनकार, अस्पताल से बाहर भगाया

  • सौ टके का सवाल, क्या अटेंडर नहीं तो राजगांगपुर सरकारी अस्पताल में इलाज नहीं

तन्मय सिंह, राजगांगपुर

राजगांगपुर में एक बड़ी विचित्र घटना सामने आयी है। आजादी के छह दशक बाद केंद्र और राज्य सरकारों ने इलाज को निःशुल्क कर दिया है, लेकिन यहां जो घटना हुई है, वह दर्द को और कुरेदने वाली है। डाक्टरों ने पीड़ित के दर्द को कम तो नहीं किया, लेकिन उसके अनाथ होने की पीड़ा को और कुरेद दिया। शारीरिक पीड़ा का इलाज तो कहीं और हो गया, लेकिन मानसिक पीड़ा जो बढ़ी, उसका इलाज कठिन हो गया है। हम बात कर रहे हैं  बड़गांव के रहने वाले अनाथ प्रमोद कुमार (60) की। यह राजगांगपुर में रहकर होटल में प्लेट धोकर अपना गुजर-बसर करते हैं। इसी पेशे से इनका जीवनयापन होता है।

कुछ दिन पहले उनके पैर में छोटा सा जख्म हो गया, जिसको प्रमोद ने अनदेखा कर दिया। धीरे-धीरे जख्म बढ़ गया। जख्म वाले जगह में कीड़े पड़ने से दर्द के मारे वह परेशान हो गये। अनाथ प्रमोद किसी तरह सरकारी अस्पताल पहुंचकर डाक्टरों को अपना जख्म दिखाया, लेकिन यहां पैर के जख्म के इलाज की जगह डाक्टरों ने दिल पर जख्म दे डाला। अकेला होने के कारण डाक्टरों ने उन्हें भर्ती करने से मना करते हुए मामूली मरहम पट्टी करके जाने को कह दिया। प्रमोद की कमजोरी की शिकायत को चिकित्सकों ने अनदेखा कर दिया। वह चिल्लाते रहा कि मेरे पैर में बहुत दर्द है, लेकिन उसकी बातों को अनदेखा कर वहां मौजूद कंपाउंडर ने उसे अस्पताल से निकाल दिया। दर्द के कारण चल पाने में असमर्थ प्रमोद वहीँ अस्पताल के बाहर जमीन पर लेट गया और दर्द से कराहने लगा। इस घटना की जैसे ही जानकारी मानवाधिकार सदस्य मोहम्मद अजहरुद्दीन को मिली तो वह तत्काल अस्पताल पहुंचे तथा जमीन पर लेटे प्रमोद को उठाकर अस्पताल के भीतर ले गये। उन्होंने डक्टरों से उनका इलाज करने के लिए भर्ती करने का आग्रह किया, तो डाक्टरों ने यह कहकर साफ साफ मना कर दिया कि पहले अटेंडर लाओ, फिर इलाज होगा। बहुत समय तक डाक्टरों एवं मानवाधिकार सदस्यों के बीच बाताबाती हुई, लेकिन अटेंडर नहीं होने के कारण दर्द से परेशान प्रमोद का इलाज करने से डाक्टरों ने मना कर दिया। इसके बाद मानवाधिकार सदस्यों ने 108 अम्बुलेंस बुलाकर प्रमोद को राउरकेला अरजीएच भेजा, जहां प्रमोद को तत्काल भर्ती कर उसका इलाज आरंभ कर दिया गया। उनकी हालत में सुधार की खबर है।

स्थानीय लोगों से पता चला है कि राजगांगपुर सरकारी अस्पताल में ऐसे वारदात कई बार हो चुके हैं। इसके पहले भी कई बार इलाज के लिए आए अनाथ मरीजों को इसी तरह बिना इलाज के भगा दिया गया है। डाक्टरों के ऐसे व्यवहार से लोगों में आक्रोश है। लोगों ने चिकित्सा व्यवस्था पर अंगुली उठाई है। लोगों का सवाल यह है कि क्या किसी के परिवार में कोई सदस्य नहीं है, तो उसकी बीमारी का इलाज राजगांगपुर अस्पताल में नहीं होगा?

 

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