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फोटो सौजन्य ः राष्ट्रपति के ट्विटर से।

संवैधानिक प्रणाली में राज्यपालों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका -राष्ट्रपति

  • राष्ट्रपति भवन में आज राज्यपालों का दो दिवसीय सम्मेलन शुरू हुआ

नई दिल्ली -भारत के राष्‍ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद के उद्घाटन भाषण के साथ राष्‍ट्रपति भवन में आज राज्‍यपालों एवं उपराज्‍यपालों का दो दिवसीय सम्‍मेलन शुरू हुआ। यह राष्ट्रपति भवन में आयोजित होने वाला ऐसा 50वां और राष्ट्रपति कोविंद की अध्यक्षता में आयोजित तीसरा सम्मेलन है। राष्‍ट्रपति ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि हमारे संवैधानिक प्रणाली में राज्यपालों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने आदिवासियों के कल्याण के संदर्भ में कहा कि आदिवासियों का विकास एवं सशक्तिकरण समावेशी विकास के साथ-साथ हमारी आंतरिक सुरक्षा से भी जुड़ा हुआ है। राज्यपाल विकास के मामले में अपेक्षाकृत पीछे रह गए इन लोगों को अपनी संवैधानिक शक्तियों के उपयोग जीवन को बेहतर बनाने के लिए उचित मार्गदर्शन कर सकते हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि आज हम देश की प्रगति के लिए सहकारी संघवाद एवं स्वस्थ प्रतिस्पर्धात्मक संघवाद पर जोर दे रहे हैं और ऐसे में राज्यपालों की भूमिका कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। उन्होंने कहा कि सभी राज्यपालों को सार्वजनिक जीवन का पर्याप्‍त अनुभव प्राप्‍त है। देश के लोगों को उनके अनुभव का अधिक से अधिक लाभ मिलना चाहिए। अंतत: हम सब जनता के लिए काम करते हैं और उनके प्रति जवाबदेह भी हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि राज्यपाल की भूमिका केवल संविधान की रक्षा और संरक्षण तक सीमित नहीं है। उनकी अपने राज्य के लोगों की सेवा और कल्याण के लिए निरंतर काम करने की संवैधानिक प्रतिबद्धता भी है। राष्ट्रपति ने इस वर्ष के सम्मेलन के विषयों के बारे में कहा कि इस सम्मेलन की तैयारी नए भारत की नई कार्य संस्कृति के अनुसार की गई है ताकि सम्मेलन को कहीं अधिक उपयोगी और लक्ष्य के उन्‍मुख बनाया जा सके। वरिष्ठ राज्यपालों के साथ चर्चा के बाद राष्ट्रीय महत्व के पांच विषयों को चुना गया। राष्ट्रपति ने कहा कि जल संसाधनों का इष्टतम उपयोग एवं संरक्षण हमारे देश की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है। हमें जल शक्ति अभियान को स्वच्छ भारत मिशन की तरह एक जन आंदोलन बनाना चाहिए। राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी नई शिक्षा नीति का लक्ष्य भारत को ‘ज्ञान महाशक्ति’ बनाना है। इस लक्ष्‍य को हासिल करने के लिए हमारे सभी उच्च शिक्षा संस्थानों को अनुसंधान एवं नवाचार को बढ़ावा देने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। कुलपति के रूप में राज्‍यपाल संरक्षकता की जिम्मेदारी भी निभाते हैं। इसलिए उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे भावी पीढ़ियों को कौशल एवं ज्ञान की प्राप्ति के लिए उचित मार्गदर्शन प्रदान करें।

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