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जी-20: पर्यावरण और जलवायु स्थिरता कार्य समूह की दूसरी बैठक गांधीनगर में 27 को

गांधीनगर, भारत की जी-20 अध्यक्षता के तहत पर्यावरण एवं जलवायु स्थिरता कार्य समूह (ईसीएसडब्ल्यूजी) की दूसरी बैठक गुजरात के गांधीनगर स्थित महात्मा मंदिर में सोमवार (27 मार्च) से शुरू होगी। तीन दिवसीय इस बैठक में पर्यावरण, मौसम, आपदा प्रबंधन और ऊर्जा संरक्षण समेत कई मुद्दों पर विचार-विर्मश किया जाएगा। केंद्रीय कपड़ा राज्यमंत्री दर्शना जरदोश और भारत की जी-20 समिट के शेरपा अमिताभ कांत इस बैठक का उद्घाटन करेंगे।

केंद्रीय जल संसाधन विभाग की विशेष सचिव देबाश्री मुखर्जी के मुताबिक इस बैठक में अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञ और अधिकारी शामिल होंगे, जिसमें विशेष तौर पर पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की सचिव लीना नंदन, जल शक्ति मंत्रालय की विशेष सचिव देबाश्री, वन समेत कई अधिकारी मौजूद रहेंगे। इसके अलावा अर्जेन्टीना, आस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, जापान के प्रतिनिधि भी मौजूद रहेंगे। बैठक में जल प्रबंधन में श्रेष्ठ प्रेक्टिसेज पर प्रस्तुति दी जाएगी। विद्युत चालित बस में प्रतिनिधिमंडल को अडालज की वाव, साबरमती केनाल साइफन एवं एस्केप स्ट्रक्चर, साबरमती रिवरफ्रंट दिखाया जाएगा।
इससे पूर्व, जी-20 ईसीएसडब्ल्यूजी की पहली बैठक विगत 09 से 11 फरवरी तक बेंगलुरू में आयोजित की गई थी। इसमें जी-20 समूह के सभी देशों ने भू-क्षरण को रोकने, ईकोसिस्टम की बहाली में तेजी लाने और समृद्ध करने के तीन प्राथमिकता वाले क्षेत्रों, जैव विविधता; एक सतत और जलवायु अनुकूल नीली अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना और संसाधन दक्षता तथा चक्रीय अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य की दिशा में रचनात्मक रूप से काम करने के प्रति रुचि एवं प्रतिबद्धता व्यक्त की थी।

गांधीनगर में होने वाली दूसरी ईसीएसडब्ल्यूजी बैठक इन्हीं मायनों में बेहद अहम समझी जा रही है। इसमें पर्यावरण, जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन समेत भविष्य में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा की जाएगी। साथ ही इस बैठक में जल संसाधनों के संरक्षण और प्रबंधन पर फोकस किया जाएगा। इस बैठक में वैश्विक पर्यावरण संरक्षण के अन्य मुद्दों पर भी चर्चा होगी। पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौतियों के अलावा भविष्य में आने वाली सभी चुनौतियों पर चर्चा की जाएगी। जल संसाधनों के संरक्षण और प्रबंधन पर विशेष बल दिया जाएगा। भारत को अपनी पारंपरिक जल प्रबंधन प्रथाओं के साथ-साथ मेगा जल परियोजनाओं को डिजाइन करने और कार्यान्वित करने के मामले में तकनीकी क्षमताओं को प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान करती है।
साभार -हिस

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