आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से पत्रकारिता जुड़ गई है। इसीलिए पत्रकारिता में विविधता को प्रस्तुत करने के लिए बहु आयाम भी विकसित हो गए हैं। इन्हें हम अभिव्यक्ति के रूप में मुद्रित और दृश्य व श्रव्य के रूप में प्रसारण से जुड़े संचार के अनेक माध्यमों के जरिए सुन व देख सकते हैं। सभी माध्यमों की आसान या कहें मुट्ठी में उपलब्धता के चलते इसकी पहुंच दूरांचलों के उन दुर्गम इलाकों में भी हो गई है, जहां आज भी सुगम रास्ते नहीं हैं। जबतक समाचार मुद्रित स्वरूप में उपलब्ध थे, तब यह जरूरी था कि इनका लाभ बिना पढ़ी-लिखी एक बड़ी आबादी नहीं उठा पा रही है और इस कारण वह देश के हालात, जनकल्याणकारी योजनाएं और जागरुकता से वंचित हैं। परंतु अब मुट्ठी में बंद मोबाइल ने इस कमी को पूरा कर दिया है। यदि आपके पास स्मार्टफोन है और उसमें इंटरनेट की सुविधा है तो फिर देश का नागरिक सीमाओं के भीतर कहीं भी बैठा हो, वह ई-पेपर से लेकर समाचार चैनलों के जरिए समाचार की भूख की पूर्ति कर सकता है। फेसबुक, वाट्सअप, इंस्ट्राग्राम व अन्य अनेक सोशल साइट्स पर वह अपनी समस्या भी टूटी-फूटी भाषा अथवा चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत कर सकता है। सोशल प्लेटफॉर्म पर आंख गढ़ाए बैठे पत्रकार इसे देखते ही उठा लेंगे और आम आदमी की यह पोस्ट खबर बन जाएगी। आजकल बाढ़ग्रस्त इलाकों में जहां पत्रकार की पहुंच संभव नहीं हो पाती है, वहां के समाचार धड़ल्ले से सोशल प्लेटफार्मों से ही उठाए जा रहे हैं।
भारत में आधुनिक पत्रकारिता का इतिहास लगभग दो सौ साल पुराना माना जाता है। इसकी शुरुआत 30 मई 1826 को हिंदी में प्रकाशित साप्तहिक समाचार पत्र उदंत मार्तण्ड से हुई थी। किसी भी भारतीय भाषा में प्रकाशित होने वाला यह देश का पहला समाचार-पत्र है। उदंत मार्तण्ड का अर्थ उगता सूर्य है। पत्रकार और पत्रकारिता के परिप्रेक्ष्य में यह शब्द अत्यंत सार्थक हैं क्योंकि पत्रकार या लेखक वह रोशनी है जो देश के नागरिकों में उस ज्ञान की जानकारी भरती है जो नागरिक को संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों के प्रति सचेत बनाए रखने का काम करती है। प्रत्येक मंगलवार को छपने वाले इस अखबार के मालिक, मुद्रक व संपादक पंडित कुमार शुक्ला थे। इसमें खड़ी बोली और ब्रजभाषा का उपयोग होता था।
अखंड या बृहत्तर भारत में सूचना संप्रेषण की शुरुआत नारद मुनि से मानी जाती है। नारद मुनि समाज में व्याप्त विसंगति या किसी आक्रांता शासक की मनमानी की सूचना ब्रह्मलोक में ब्रह्मा, विष्णु और महेश को पहुंचाने का काम करते थे और फिर ये शक्तिशाली ईश्वरीय अवधारणा से जुड़े देव समस्या के समाधान के प्रति सचेत हो जाते थे। रामायण काल में सूचना के वाहक के रूप में यही काम रामभक्त हनुमान ने किया था। मध्य प्रदेश के जनसंपर्क विभाग से सेवानिवृत्त आरएमपी सिंह ने इस कालखंड की पत्रकारिता को बड़े ही सहज रूप में अति सुंदर शिल्प के साथ अपनी पुस्तक रामचरित मानस में संवाद संप्रेषण में अभिव्यक्त किया है। पत्रकारिता के क्षेत्र में यह पुस्तक इसलिए अनूठी है क्योंकि पत्रकारिता के लगभग सभी आयामों को स्पर्श करते हुए हरेक पहलू को इस पुस्तक में आधुनिक संदर्भ में व्याख्यायित किया गया है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जो आज अनेक रूपों में है, स्वतंत्रता के पहले वह रेडियो और बाद में दूरदर्शन के माध्यमों में ही दिखाई देता था। किंतु यही माध्यम महाभारत काल में धृतराष्ट्र और संजय के वार्तालाप में इस ढंग से दर्शाया है कि कोई पत्रकार उपग्रह से जुड़े कैमरे के जरिए कुरुक्षेत्र में चल रहे महाभारत युद्ध का लाइव वृत्तांत सुना रहा हो। मेरी दृष्टि में यही कल्पना इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और उसमें भी लाइव प्रसारण का आधार स्रोत है।
अब एक युवा जो पत्रकार बनने की जिज्ञासा रखता है, वह पत्रकारिता का समग्र अध्ययन करे कहां, सार्थक प्रायोगिक प्रशिक्षण कहां से ले तो इस जिज्ञासा शमण का सर्वश्रेष्ठ स्थान है भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय! यह मध्य प्रदेश का ही नहीं एशिया का सबसे पहला पत्रकारिता विवि है, जिसकी नींव 1990 में रखी गई थी। आज इस विवि से प्रशिक्षित होकर निकले पत्रकार प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं एवं समाचार चैनलों में श्रेष्ठतम सेवाएं दे रहे हैं। विवि के कुलपति संजय द्विवेदी कहते हैं, `हमारी कोशिश है कि यह विवि भारतीय भाषाई पत्रकारिता के प्रशिक्षण के सबसे महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में विकसित हो। इसके लिए हरसंभव प्रयास करेंगे।’
उनकी यह परिकल्पना इसलिए अहम् है क्योंकि आज हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं से प्रशिक्षण देने वाले विवि तो देशभर में खुल गए हैं लेकिन भारतीय भाषाओं में इनका अभाव खलता है। दरअसल, जितनी आज महत्वपूर्ण व राष्ट्रव्यापी पत्रकारिता हिंदी व अंग्रेजी की है उतनी ही महत्वपूर्ण देश की अन्य भाषाओं की भी है। इन भाषाओं में भी बड़े-बड़े समाचार पत्र व पत्रिकाएं प्रकाशित होते हैं और लगभग संविधान की अनुसूची में दर्ज प्रत्येक भाषा में टीवी समाचार चैनल हैं। जब देश में बड़ी राजनीतिक घटना या दुर्घटना घटती है तो हम देखते हैं कि हिंदी व अंग्रेजी के चैनल, भाषाई चैनलों से ही खबर उठाकर प्रसारित करते हैं। इसीलिए जरूरी है कि भाषाई पत्रकार भी पत्रकारिता के गुणों से संपूर्ण रूप में दक्ष हों और दायित्व को लेकर संविधान के नैतिक मानदंडों के प्रति स्वनियंत्रित हों। स्वनियंत्रण की नैतिकता ही किसी पत्रकार को इस क्षेत्र में लंबी पारी खेलने का अधिकारी बनाने का रास्ता खोलती है। स्वनियमन का प्रशिक्षण कोई विद्यार्थी आदर्श रूप में वहीं से ग्रहण कर सकता है जहां के परिवेश में नैतिक मूल्य आचरण में शुमार हों। स्वतंत्रता आंदोलन में पत्रकारिता के माध्यम से मुख्य भूमिका निभाने वाले पंडित माखनलाल चतुर्वेदी न केवल समर्थ पत्रकार व लेखक थे बल्कि कर्मवीर नामक पत्र निकालकर उन्होंने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध कलम चलाकर जनमानस को भी स्वतंत्रता के लिए खड़ा करने में अहम् भूमिका निभाई। गोया यह नाम ही आदर्श आचरण का प्रतिरूप है।
यह विवि इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह खबर से आगे भी क्या संभव है, इस धारणा को विकसित करता है। यानी मौलिक सोच को कैसे फीचर लेखन का आयाम दिया जाए, इस समझ को विद्यार्थी के मन में विकसित करता है। इस लेखन में विचार भी अंगीकार होता है। यही वह समझ है जो नवोदित पत्रकार में संपादकीय लिखने की क्षमता विकसित करती है। इसलिए यहां के प्राध्यापक रामदीन त्यागी कहते हैं संचार माध्यमों के व्यापक परिदृश्य में सार्थक हस्तक्षेप और कर्तव्य के प्रति सचेत बने रहने के लिए हमें अत्यंत कर्मठ और लगनशील युवा पत्रकारों को गढ़ने की जरूरत है, जिससे वे राष्ट्रीय सरोकरों से जुड़े रहते हुए अपनी भाषा में आकर्षक ढंग से समाचार अभिव्यक्त करने की दक्षता इस परिसर से प्राप्त कर सकें।
वर्तमान में इस विवि में प्रवेश की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है। यहां मीडिया और आईटी पाठ्यक्रमों को पढ़ने की स्नातक व स्नातकोत्तर सुविधाएं हैं। इन क्षेत्रों में कैरियर के अभिलाषी छात्र-छात्राएं भोपाल स्थित विवि के अलावा इसी विवि के रीवा और खंडवा परिसरों में भी पढ़ने के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। प्रवेश की सुविधा ऑनलाइन के जरिए विवि की वेबसाइट पर जाकर भी सीधे आवेदन फॉर्म भर सकते हैं।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)