इण्डो एशियन टाइम्स, नई दिल्ली।
माँ पार्वती और भोले त्रिपुरारी सबकी सुनकर उनकी कामनाएँ पूरी करते हैं। यह भी कहा जाता है कि प्रलय की बेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं, इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया। विश्वास किया जाता है कि तीनों लोकों की अपार सुंदरी तथा शीलवती गौरी को अर्धांगिनी बनाने वाले शिव प्रेतों और पिशाचों से घिरे रहते हैं जिनका रूप भयंकर और डराने वाला है। भगवन शिव का रूप भी बड़ा विचित्र, अजीब है। सारे शरीर पर भस्म लपेटे हुए, गले में विषैले सर्पों का हार, कंठ में विष धारण करे हुए, जटाओं में जगत-तारिणी पावन देवी गंगा तथा माथे में प्रलयंकार ज्वाला भोले भंडारी का श्रृंगार उनकी पहचान है।
बैल को वाहन के रूप में स्वीकार करने वाले शिव ऐसा रूप होने पर भी भक्तों का मंगल करते हैं और श्री-संपत्ति प्रदान करते हैं। यह दिन जीव मात्र के लिए महान उपलब्धि प्राप्त करने का दिन भी है। जो लोग इस दिन परम सिद्धिदायक उस महान स्वरूप की उपासना करता है, वह अपने सभी कष्टो से मुक्ति पाकर परम भाग्यशाली हो जाता है। मंगल की मूर्ति भगवान शिव की महत्ता के विषय में बताया गया है कि विविध शक्तियाँ, गुणों के कारण और देवी- देवतागण भगवान शिव की आराधना करते है। कई स्थानों पर ये अपने ज्योतिर्लिंगों के रूप में विराजमान हैं। भगवान शिव के विषय में दक्षिण भारत के प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘नटराजम्’ में कहा गया है कि भगवान शिव अतिशीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं तथा कुछ भी देना शेष नहीं रखते हैं। इसमें बताया गया है कि ‘त्रिपथगामिनी’ गंगा, जिनकी जटा में शरण और विश्राम पाती हैं, त्रिलोक- आकाश, पाताल व मृत्युलोक वासियों के त्रिकाल यानी भूत, भविष्य व वर्तमान को जिनके त्रिनेत्र त्रिगुणात्मक बनाते हैं।
Posted by: Desk, Indo Asian Times